कानपुर देहात के जोत गांव का जमदग्नि ऋषि ऐतिहासिक धार्मिक स्थल अपने आप में एक इतिहास समेटे हुए है। बताया जाता है कि भगवान परशुराम के पिता जमदग्नि ऋषि इसी गांव में एक आश्रम बनाकर पत्नी रेणुका के साथ शिव तपस्या किया करते थे और उनकी जीविका चलाने के लिए कामधेनु गाय उनके पास थी, जिसे पाने के लिए सहस्रबाहु ने परशुराम के पिता जमदग्नि का वध कर दिया था। जिसके बाद परशुराम ने सहस्रबाहु अर्जुन का वध कर दिया। तब से यह आश्रम जमदग्नि ऋषि के आश्रम से प्रसिद्ध है। आज भी लोग यहां दर्शन के लिए उमड़ते है।
आस्था का केन्द्र माने जाने वाले इस प्राचीन शिव मंदिर को जनता ने पर्यटन स्थल बनाने की गुहार भी लगाई थी। क्षेत्रीय बुजुर्गों का कहना हैं कि आज भी वहां खोजने से मानव अस्थियां निकलती हैं, जो इसको प्रमाणित करती है। आज भी यहां की मान्यता है कि यहां धनुष यज्ञ का आयोजन नहीं किया जाता हैं। कई बार लोगों ने प्रयास किया तो ऐसा करने पर दैवीय आपदा के रूप में आंधी, तेज बारिश या ओलावृष्टि हो गई। इसके अतिरिक्त इस गांव में क्षत्रिय या लोहार वर्ग के लोग निवास नहीं करते हैं। ऐसा करने पर पूरे परिवार पर संकट आ जाता है।