कानपुर। गंगा के किनारे बसे शहर को अंग्रेजों ने इंडिया की उद्योग राजधानी बनाई। यहां दर्जनों मिलों की अधारशिला रखी गई। सैकड़ों की संख्या में मजदूर इन मिलों पर
कार्य कर अपना पेट भरा करते थे, लेकिन तीन दशक पहले मिलों पर तालाबंदी होने के चलते यहां गैरकानूनी उ़द्योग पनपने लगे। 2002 में
मायावती की सरकार बनने के बाद कानपुर के कटरी गांवों में हर घर पर शराब की अवैध भठ्ठियां संचालित होने लगी। इस पर जब सफेदपोशों की नजर पड़ी तो उन्होंने शराब को लघु उद्योग में तब्दील कर दिया। कम लागत में अधिक मुनाफा देख कारोबारी लोगों की जान की परवाह नहीं करते हुए नकली शराब को आपूर्ति ग्रामीण और शहरी इलाकों के ठेकों में करने लगे। जिसके कारण जहां सरकार को राजस्व का नुकसान उठाना पड़ा वहीं इसका सेवन करने वाले बीमार पड़ने लगे। शनिवार और रविवार को ,खादी, आबकारी विभाग और शराब माफिया के काकटेल में खाकी का तड़का मिलावटी शराब (कच्ची शराब) के पीने से 11 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई, वहीं दर्जनभर से ज्यादा ग्रामीणों अंधे हो गए।
छोटे उद्योग में तब्दीलसजेंड़ी थानाक्षेत्र में शनिवार को एक सरकारी ठेके से खरीदी गई जहरीली शराब पीने से छह लोगों की मौत हो गई तो दर्जनभर से ज्यसदा ग्रामीण बीमार पड़ गए। जिनका इलाज हैलट अस्पताल में चल रहा है। इनमें से पांच की आंख की रोशनी चली गई है। वहीं रविवार को एक अन्य ठेके की शराब का सेवन करने से पांच लोग मौत की गाल में समा गए। दो दिन मे ग्यारह लोगों की मौत के बाद जिला प्रशासन हरकत में आया और छह लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर मुख्य आरोपी विनय सिंह पर 25 हजार का इनाम घोषित कर दिया। पर यह एक विनय सिंह नहीं, ऐसे दर्जनों शराब के अवैध कारोबारी हैं, जो आबाकारी, खाकी और खादी के साथ मिलकर जहरीली शराब का बड़े पैमाने पर उत्पादन कर रहे हैं। बिल्हौर से लेकर महाराजपुर तो नौबस्ता से रमईपुर और कल्याणपुर क्षेत्र की दर्जनों बस्तियों और गांवों में शराब की अवैध भठ्ठियां धंधक रही हैं। कानपुर में शराब का अवैध करोबार छोटे उद्योग के रूप में तब्दल हो गया है।
80 फीसदी सरकारी ठेकों पर नकली शराबजानकारों का मानना है कि अस्सी फीसदी सरकारी ठेकों पर नकली और जहरीली शराब पियक्कड़ों को परोसी जा रही है। सरकार ठीक तरह से जांच कराए तो यह सभी ठेका संचालक पकड़े जा सकते हैं। भौती निवासी सुशील दुबे ने बताया कि 6 लोगों की मौत के बाद भी कुछ इलाकों में अभी बदस्तूर नकली शराब बनाई जा रही है। पुलिस जान कर इन पर कार्रवाई नहीं करती। नकली शराब के जरिए पुलिस को बड़ी आमदानी होती है। नई आबकारी नीति के चलते शराब माफियाओं ने मिलवटी शराब का बड़े पैमाने पर काम शुरू कर दिया है। सरकारी दुकानों की जांच के नाम पर आबकारी विभाग के साथ स्थानीय पुलिस है, पर कार्रवाई नहीं होती। सूत्रों की मानें तो आबकारी विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से यह गोरखधंधा चल रहा है। कारोबारी इसके बदले उन्हें मोटी रकम पहुंचाते हैं।
नहीं चेते तो जा सकती हैं और जानेंगन्ने का मौसम खत्म होते ही महुआ और सड़े गेहूं व जौ से शराब बनाने का काम शुरू हो जाता है। धंधे से जुड़े लोग रसूखदार, पुलिस व आबकारी विभाग की कठपुतली ही हैं क्योंकि कमाई का एक बड़ा हिस्सा तो इन्हीं की झोली में जाता है। तैयार माल शराब के ठेकों के साथ ही आसपास इलाकों में फेरी लगा और परचून की दुकान में रख कर खुलेआम बेचा जाता है। जानकारी होने के बाद भी लघु उद्योग की तरह पनप रहे इस अवैध कारोबार को बंद कराने के लिए कोई
ध्यान नहीं दे रहा। भौती निवासी सुशील दुबे ने बताया कि गंगा कटरी किनारे बसे मोहिद्दीनपुर, गौरी, राधन, अकबरपुर सेंग, भूवैरापुर, आंकिन, नजफगढ़, नारायणपुर, राजापुर, बगहा, रघुनाथपुर और छांजा गांवों में सीजन के हिसाब से कच्ची शराब बनाई जाती है। इन गांवों में शराब माफिया महिलाओं और छात्राओं को मुहंमांगी कीमत देकर शराब बनवाते हैं और फिर खास लोगों की मदद से इनकी आपूर्ति सरकारी दुकानों में की जाती है।
कुछ इस तरह से तैयार होती है शराबज्यादा नशीला बनाने के चक्कर में शराब जहरीली हो जाती है। देशी ठेके में ऐसी शराब की ’मसाला शराब’ के नाम से बिक्री होती है। इसमें दुकानदार मिथाइल, नौसादर, अलप्राक्स, डाइजापाम आदि का मिश्रण मिला देते है। जब यह गलत मात्रा में होता है तो घातक हो जाता है। जैसा कि सचेंडी की घटना में होना बताया जा रहा है। जानकारों ने बताया कि शराब कारोबारी इसे तैयार करने के लिए गुड़ का शीरा, महुआ, बेशरम का पत्ता, नीम की पत्ती आदि को मिलाकर इसे सड़ाने को जमीन में गाड़ दिया जाता है। करीब 10-15 दिन बाद इसे निकालकर भट्टी पर चढ़ाया जाता है। इसके बाद शराब को नशीला बनाने के लिए मिथाइल मिलाया जाता है। मिथाइल न मिलने पर नौसादर या फिर यूरिया या वाशिंग पाउडर मिलाकर शराब तैयार की जाती है। अधिक नशीला बनाने को अलप्राक्स समेत अन्य नशीली गोलियों का घोल भी मिलाया जाता है। मिलावट शराब को सरकारी ठेकों में सप्लाई की जाती है। ठेका संचालक नकली बोतलों में इसे पैक कर दोगुनी रकम वसूलते हैं। ज्यादा नशा होने के चलते पियक्कड़ भी यही शराब की डिमांड करते हैं।
यह बीमरियां होने का खतरानकली शराब तैयार करने में इस्तेमाल किया जा रहा मिथाइल बेहद घातक है इसमें एल्कोहल की मात्रा अधिक होने पर शराब का सेवन करने वाले की आंख की रोशनी जा सकती है। यदि मात्रा और अधिक हुई तो पीने वाले की जान भी जा सकती है। नौसादर को कापर सल्फेट नाम से जाना जाता है। इससे चर्म रोग की आशंका। नाइट्राबेट व डायजापाम नींद की दवा है। आंख व दिमाग को क्षति पहुंचाती है। मिथाइल घातक अम्ल है। इसके प्रयोग से जान को खतरा। यूरिया खेत की उर्वरा
शक्ति बढ़ाती है। धीमे जहर का काम करती है। आक्सीटोसिन का प्रयोग
प्रसव के दौरान चिकित्सक करते हैं। हैलट मेडिसिन विभाग के डॉक्टर विकास गुप्ता ने बताया कि शनिवार के दिन जिन लोगों की शराब का सेवन करने से मौत हुई है, उसमें मिथाइल और यूरिया की मात्रा पोस्टमार्टम के दौरान पाई गई है। इन तत्वों से बनी शराब का सेवन करने से आंख की रोशनी, लिवर और किडनी खराब होने का खतरा होता है। ज्यादा मात्रा में अगर किसी ने इसका इस्तेमाल किया तो उसकी मौत हो सकती है।
कुछ इस तरह से बोलीं आबकारी सचिवउत्तर प्रदेश आबकारी विभाग कानपुर के जुड़वा जिलों में जहरीली शराब की बिक्री की विभागीय जॉच करेगा और दोषी अफसरों को चिन्हित करके उनके खिलाफ कार्यवाही की जायगी। यह बात कानपुर में पीड़ितों से मिलने पहुॅची प्रमुख सचिव आबकारी कल्पना अवस्थी ने मीडिया से बातचीत में कही। उन्होंने खुद पूरे मामले की जांच किए जाने की बात कही। सचिव ने बताया कि सजेंडी में अकेले दर्जनभर से ज्यादा इलाकों में शराब की फक्ट्रियां पकड़ी गई, लेकिन आबाकरी विभाग की नींद नहीं टूटी। यही नहीं जिन इलाकों में पुलिस को अवैध शराब बनते मिली,उन इलाकों में क्षेत्रीय आबकारी निरीक्षकों पर कार्यवाही नहीं की गयी। ऐसे दो इलाकों के इन्सपेटरों को तो मलाईदार इलाकों का अतिरिक्त प्रभार से नवाज दिया गया। आज विभाग की प्रमुख सचिव ने कहा कि पिछले रिकार्डो का अध्ययन किया जायगा और दोषी बक्शे नहीं जायेगें।
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