कानपुर। कहते हैं कि
अमित शाह के यह चाणक्य चुनावी हवा रूख फांपकर अपनी रणनीति बनाते हैं और इसका तोड़ विपक्ष के पास नहीं होता। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिशद से आने वाले भाजपा के संगठल मंत्री अमित शाह के सबसे भरोसेमंद नेताओं में से एक हैं और 2017 का चुनाव कुछ हद तक इन्हीं के चलते भाजपा फतह कर सकी। उपचुनाव में मिली कार के साथ शाह के यह चाणक्य फिर से एक्शन में आ गया है और पिछले 45 दिन से परदे के पीछे रहकर गांव, गली और मोहल्लों की खाक छान रहा है। सुनील बंसल की रिपोर्ट के बाद अमित शाह ने सीएम योगी के साथ ही प्रदेश अध्यक्ष महेंद्रनाथ पांडेय को तलब कर गांवों का दौरा कर सरकारी बाबुओं, जनप्रतिनिधियों के साथ संगठन के पदाधिकारियों पर नकेल कसने के आदेश दिए। इसी के बाद पूरी सरकार सड़क पर उतर आई और गांव चलो ऑपरेशन का आगाज कर दिया। देरशाम कानपुर में संगठन के पदाधिकारियों के साथ बैठक कर सभी जनप्रतिनिधियों को आदेश दिया कि हर दिन आपसे में से एक नेता भाजपा कार्यालय नीवन माकेट में दो घंटे बैठेगा और आमजन के साथ ही कार्यकर्ताओं की समस्याएं सुनकर उसका तत्काल निराकरण कराएगा।
20 हजार बूथ प्रमुखों के बल पर किया फतहबीजेपी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अकेले 312 सीटें जीतकर जो इतिहास रचा है, उसका श्रेय अमित शाह और पीएम नरेंद्र मोदी को जा रहा है। हालांकि, बीजेपी की इस प्रचंड जीत में पर्दे के पीछे
काम कर रहे सुनील बंसल का भी महत्व कम नहीं है। राजनीति से इतर बीजेपी के प्रदेश संगठन महामंत्री सुनील बंसल को कम ही लोग जानते हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद से पिछले ढाई सालों में वह संगठन के भीतर मजबूती के साथ उभरे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय सह-संगठन मंत्री रह चुके बंसल को लोकसभा चुनाव से पहले संगठन में बड़ी जिम्मेदारी दी। कानपुर-बुंदलेखंड की कुर्सी बंसल के कहने पर मानवेंद्र सिंह को मिली। बंसल और मानवेंद्र सिंह ने 17 जिलों की 52 विधानसभा और 10 लोकसभा सीटों पर 20 हजार बूथ प्रमुख, 28 विस्तारक, 109 मंडल अध्यक्ष के साथ ही 21 पदाधिकारियों की टीम बनाई। इसी टीम ने 52 में से 47 और 10 में से 9 लोकसभा सीटों पर कमल खिलाया।
बंसल के आगे नहीं टिक पाए पीके राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के साथ मिलकर बंसल ने 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए यूपी में खास रणनीति के तहत काम किया और बीजेपी तथा उसकी सहयोगी पार्टियों को 80 में से 73 सीटें दिलाने में अहम फैक्टर रहे। एक ओर जहां यूपी विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने प्रशांत किशोर का हाथ थामा, वहीं बंसल ने कार्यकर्ताओं के भरोसे ही यूपी चुनाव लड़ने का फैसला किया। युवाओं से सीधा जुड़ने के लिए बीजेपी की सोशल मीडिया टीम पर खास नजर रखने वाले सुनील ने न सिर्फ यूपी में जातीय समीकरणों को बेहद नजदीकी से समझा बल्कि बूथ लेवल तक दलित, ओबीसी और महिलाओं से कार्यकर्ताओं को सीधे तौर पर जुड़ने को कहा। बंसल की इसी रणनीति का नतीजा था कि बीजेपी की यूपी में 2 करोड़ से ज्यादा सदस्यता हुई जो 2018 में करीब तीन करोड़ के आसपास पहुंच गई हैं। बंसल कभी सुर्खियों में नहीं रहते, बल्कि परदे के पीछे रहकर पार्टी की मजबूती के लिए काम करते हैं। पिछले तीन माह से वह यूपी के अधिकतर सभी जिलों का दौरा कर रहे हैं और इसी के तहत मंगलवार को वह कानपुर आए।
उसी फार्मूले को आजमा रहे बंसल पत्रिका से खास बातचीत के दौरान बंसल ने बताया कि 2017 चुनाव से पहले पार्टी की सबसे बड़ी चुनौती बीजेपी की ’शहरी पार्टी’ की छवि को खत्म करना था। इसी के तहत उन्होंने यूपी के प्रभारी ओम माथुर के साथ मिलकर पार्टी के टिकट पर पंचायत चुनाव लड़वाने की योजना बनाई। हालांकि, दोनों की इस योजना को काफी विरोध का सामना करना पड़ा लेकिन बड़े अधिकारियों को विश्वास में लेकर बंसल ने पार्टी को गांवों में पहुंचाने के लक्ष्य के साथ पंचायत चुनाव लड़वाया और पार्टी के खाते में 327 सीटें डालीं। सुनील कहते हैं कि पंचायत चुनाव में पार्टी के खाते में बहुत अधिक सीटें तो नहीं आईं लेकिन गांवों तक बीजेपी की पहुंच हो गई, जिसका सीधा फायदा विधानसभा चुनाव में देखने को मिला। बंसल ने बूथ लेवल पर बीजेपी को मजबूत करने के लिए कमिटियां बनाईं और उन कमिटियों के प्रभारी तय करके खुद उनकी रिपोर्ट लेने का काम शुरू किया। इसका नतीजा यह हुआ कि प्रदेश के 1 लाख 47 हजार बूथों में से 1 लाख 8 हजार बूथों पर बीजेपी ने प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराई। 2019 से पहले योगी सरकार गांव, सड़क और चौराहों में सीधे जनता से रूबरू होगी
। कुछ इस तरह से काम करते हैं बंसल प्रदेश के जातिगत समीकरणों को
ध्यान में रखते हुए उन्होंने ने शुरुआती 6 महीने में 4 करोड़ वोटरों का डेटा एकत्रित किया और फिर उसे जातिगत आधार पर बांटकर क्षेत्र के हिसाब से उपयुक्त जाति के लोगों को बूथ से लेकर जिला स्तर तक की कमिटियों में अहम जिम्मेदारी दी।
मायावती के दलित और मुस्लिम वोट बैंक के एजेंडे पर बंसल ने सीधा दांव चलते हुए हिंदुओं को प्रमुखता से जिम्मेदारियां दीं। बंसल कहते हैं कि बीजेपी काम करते समय किसी जाति या धर्म के बारे में नहीं सोचती लेकिन जब चुनावी ध्रुवीकरण हो रहा था, उस समय बेहद जरूरी था कि हिंदुओं को अलग-थलग महसूस न होने दिया जाए। बंसल की रणनीति के तहत ही यूपी में लड़ाई ’मुस्लिम-यादव-दलित बनाम बाकी सब’ जैसी लगने लगी थी।
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