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कानपुर

गन्ने की खोई भी भरेगी किसानों की जेब, तैयार होगा क्रीम-साबुन

थाईलैंड, चीन और अमेरिका के कृषि वैज्ञानिक मिलकर करेंगे कामसीएसए में बनेंगे कागज, साबुन सहित कई बायोडिग्रेबल उत्पाद

कानपुरFeb 19, 2019 / 02:54 pm

आलोक पाण्डेय

cane loss

गन्ने की खोई भी भरेगी किसानों की जेब, तैयार होगा क्रीम-साबुन

कानपुर। गन्ने का रस निकालने के बाद बची हुई उसकी खोई, जिसे आमतौर पर लोग फेंक दिया करते थे, अब उसे इकट्टा करके बेचा जा सकेगा। इससे अतिरिक्त आय होगी। इसकी खरीद चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय करेगा। सीएसए में गन्ने की इसी खोई से क्रीम और साबुन तैयार किया जाएगा। इसके लिए थाईलैंड के केस्टार्ट कृषि विश्वविद्यालय से सीएसए का समझौता होगा। यह जानकारी सीएसए में आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में दी गई।
नई तकनीक सीखेंगे छात्र
सीएसए के कुलपति प्रो. सुशील सोलोमन ने बताया कि गन्ने की खोई से विभिन्न उत्पाद तैयार करने के लिए समझौते की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। जिसके बाद सीएसए के छात्रों को थाईलैंड की नई तकनीक सीखने का मौका मिलेगा। दूसरी ओर गन्ने की खोई का उपयोग होने से किसानों की भी आय बढ़ेगी। सीएसए में इस खोई से कृषि वैज्ञानिक क्रीम, साबुन, कागज सहित कई नए उत्पाद तैयार करेंगे। उद्यमिता विकास हेतु पोषक तत्वीय, बीज उत्पादन, बीज गुणवत्ता प्रबंधन विषय पर आयोजित इस कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने छात्रों के साथ जानकारी साझा की।
वसा घटाने में होगा प्रयोग
गन्ने की खोई का उपयोग थाईलैंड में लंबे समय से हो रहा है। वहां गन्ने की खोई से नैनो सेलुलोस तैयार किया जाता है। इसका प्रयोग कई खाद्य पदार्थ में किया जाता है, जिससे उस खाद्य पदार्थ में मौजूद वसा कम हो जाता है, जिससे उसका सेवन करने वालों को मोटापे की समस्या से नहीं जूझना पड़ता है। थाईलैंड के केस्टार्ट कृषि विश्वविद्यालय से आए प्रो. प्रकित सुकेई ने बताया कि इसके अलावा कई अन्य उत्पाद भी तैयार किए जाते हैं। जिससे किसानों की आय भी बढ़ती है।
केमिकल से बढ़ाया उत्पादन
पुणे से सीएसए पहुंचे डॉ. प्रशांत ने बताया कि पोटेशियम साल्ट फॉस्फोरस केमिकल के जरिए उन्होंने महाराष्ट्र में गन्ने के उत्पादन में वल्र्ड रिकार्ड बनाया है। जिसके लिए महराष्ट्र सरकार की ओर से उन्हें सम्मानित भी किया गया। उन्होंने बताया पहले जहां १५० टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन होता था, वहां पर केमिकल के जरिए ४०० टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन हुआ है।

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