हैलट अस्पताल के प्रमुख अधीक्षक प्रो. आरके मौर्या का कहना है कि अभी लिया जा रहा शुल्क काफी कम है, इससे व्यवस्थाएं पटरी से उतर रही हैं। इसे देखते हुए शासन ने इसके रिवीजन का फैसला लिया है। उन्होंने बताया कि कम शुल्क होने की वजह से ग्रामीण इलाकों के वे मरीज भी हैलट आ जाते हैं, जो मामूली बीमार हैं और पीएचसी व सीएचसी स्तर पर ही समुचित इलाज करा सकते हैं। मगर उनके हैलट में इलाज कराने से यहां पर बेवजह भीड़ बढ़ जाती है और इस कारण व्यवस्थाएं लडख़ड़ाने लगती हैं। उन्होंने बताया कि अभी तक पांच रुपए से लेकर 250 रुपए तक खून की बेसिक जांचों की फीस है। यह बढक़र ढाई गुना होगी। इसके साथ ही कुछ जांचों की फीस 400 रुपए या उससे अधिक है। इसी तरह ऑपरेशन शुल्क अभी तक अधिकतम 400 रुपए है। इसे बढ़ाकर लगभग डेढ़ हजार रुपए करने का प्रस्ताव किया गया है।
जीएसवीएम को संस्थान बनाए जाने की घोषणा के बाद पीजीआई और केजीएमयू के संयुक्त बाइलाज के लिहाज से व्यवस्था दोबारा लागू होगी। इसका असर हैलट के साथ ही चेस्ट अस्पताल, अपर इंडिया जच्चा बच्चा, बाल रोग में भी पड़ेगा। यानी पंजीकरण शुल्क (परचे की फीस) व भर्ती शुल्क समेत सभी जांचों की फीस में परिवर्तन होने की उम्मीद है। इसके चलते हड़्डी के ऑपरेशन में लगने वाले इम्प्लांट के लिए सभी केजीएमयू और पीजीआई की तर्ज पर खरीदारी का सिस्टम लागू करने के आदेश मिले हैं। साथ ही आयुष्मान लाभार्थियों, सीएम और विधायक निधि से होने वाली कई खरीदों में भी यही व्यवस्था मान्य होगी।
शासन की ओर से हैलट में दवाओं की खरीद पर रोक लगाई गई है। जिसका असर यहां की व्यवस्थाओं पर पड़ेगा। अगले तीन महीने जांचों का संकट रहेगा। हैलट में दवाओं का बजट खत्म हो चुका है और किसी तरह की नई खरीदारी पर रोक लगा दी है। ऐसे में नए स्वाथ्य सेवाओं के लडख़ड़ाने की संभावना है। इसके साथ ही इस संबंध में प्रो. आरके मौर्या का कहना है कि शासन से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए कहा गया है कि बजट की प्रत्याशा में किसी तरह की खरीदारी नहीं की जाए। नया बजट आने के बाद ही कोई काम होगा।