टीडीएस शुरू करने का मकसद था आय के स्रोत पर ही टैक्स काट लेना। उदाहरण के तौर पर यदि किसी व्यक्ति को कोई आय होती है तो उस आय से टैक्स काटकर अगर व्यक्ति को बाकी रकम दी जाए तो टैक्स के रूप में काटी गई रकम को टीडीएस कहते हैं। सरकार टीडीएस के जरिए टैक्स जुटाती है। टीडीएस विभिन्न तरह के आय स्रोतों पर काटा जाता है मसलन सैलरी, किसी निवेश पर मिले ब्याज या कमीशन आदि पर।
टीडीएस आज राजस्व का कितना बड़ा माध्यम बन चुका है, इसका उदाहरण है कानपुर से मिलने वाला टीडीएस। अकेले कानपुर से 1000 करोड़ रुपए का राजस्व टीडीएस से आता है। पिछले पांच साल में टीडीएस से मिलने वाले राजस्व में तीन गुना बढ़ोतरी हुई है। वर्तमान में सामान्य कर्मियों का वेतन ढाई लाख, वरिष्ठ नागरिकों की पेंशन तीन लाख और अति वरिष्ठ नागरिकों की पेंशन पांच लाख रुपये से ज्यादा होने पर नियोक्ता को टीडीएस काटना पड़ता है।
अब वेतन पाने वाले कर्मचारियों व अधिकारियों से सालाना आमदनी की गणना के बाद ही टीडीएस काटा जाएगा। यदि टैक्स योग्य आय छूट सीमा के दायरे में है तो टीडीएस कटौती नहीं होगी। इससे पहले वेतन में विभिन्न प्रकार की राहत, छूट और कटौती शामिल नहीं थी लेकिन अब सीबीडीटी ने स्पष्ट कर दिया है कि सालाना आय में राहत, छूट और कटौती को घटाने के बाद ही टीडीएस की कटौती की जाएगी।
ग्रॉस टोटल इनकम पर मिलने वाली कटौतियां, छूट व राहत को घटाने के बाद भी टैक्स योग्य आय बनती है तो करदाता 12 किस्तों में टीडीएस दे सकेगा। आयकर विभाग की तरफ से कई तरह के अलग-अलग पेमेंट्स पर अलग-अलग टैक्स की दरें हैं। उदाहरण के तौर पर अगर आप भारतीय हैं और आपने डेट म्यूचुअल फंड्स में निवेश किया तो इस पर जो आय प्राप्त हुई उस पर कोई टीडीएस नहीं चुकाना होगा लेकिन अगर आप एनआरआई (अप्रवासी भारतीय) हैं तो इस फंड से हुई आय पर आपको टीडीएस देना होगा।