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कानपुर

इस अस्पताल में भी है ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी! मरीज को खर्च करने पड़े 10 हजार रुपए

शर्मनाक- अस्पताल से बाहर फेके जाने के बाद टीबी ग्रसित बहन के लिए भाई ने बाजार से 10 हजार में खरीद आक्सीजन सिलेंडर और फिर फुटपाथ पर..

कानपुरAug 13, 2017 / 09:46 pm

Abhishek Gupta

Patient With Oxygen Cylinder

Patient With Oxygen Cylinder

कानपुर. गोरखपुर के मेडिकल कॉलेज में आक्सीजन खत्म होने से 60 से ज्यादा बच्चों की मौत हो गई, जिसके चलते योगी सरकार की चारो तरफ किरकिरी हो रही है। बावजूद सरकारी अस्पताल अपने पुराने ढर्रे पर बदस्तूर चल रहे हैं। कानपुर के सबसे बड़े अस्पताल उर्शला में मरीजों का हाल बेहाल है, तीमारदार को अपने मरीज को खुद ऑक्सीजन लगानी पड़ रही है तो वहीं मेडिकल कालेज से सम्बद्ध मुरारीलाल चेस्ट हास्पिटल से टीबी ग्रसित महिला को बाहर कर दिया गया। सांसें बरकरार रहें, इसके लिए पीड़िता के भाई को बाजार से ऑक्सीजन खरीदनी पड़ रही है। हालात ये हैं कि डॉक्टर और कर्मचारी मरीजों से सीधे मुंह बात तक नहीं करते। अस्पताल में फ्री में मिलने वाली दवा भी बाहर से लानी पड़ रही है।
यहां डॉक्टर नहीं तीमारदार चढ़ाते हैं ऑक्सीजन-
गोरखपुर में इलाज के दौरान हुई बच्चों की मौत के बाद रविवार को पत्रिका की टीम शहर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल उर्सला पहुंची। यहां पर ऐसे कई मरीज के तीमारदार मिले, जो डॉक्टरों और कर्मचारियों की प्रताड़ना से आहत दिखे। तीमारदारों का आरोप है कि डॉक्टर अधिकतर दवाएं प्राइवेट मेडिकल स्टोर से मंगवाते हैं। आनाकानी करने पर मरीज को बाहर करने की धमकी देते हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि अस्पताल में ऑक्सीजन के पार्यप्त साधन है, लेकिन आक्सीजन चालू और बंद करने का काम डॉक्टर नहीं करते बल्कि तीमारदार करते हैं। तीमारदार ने बताया कि मरीज को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी, इसी के कारण हम उसे उर्सला लेकर आए। डॉक्टरों ने उसे एडमिट कर लिया, लेकिन डॉक्टर व नर्से ऑक्सीजन शुरू करने के लिए नहीं आते, मजबूरी में हमें ही उनका काम करना पड़ रहा है। जिला अस्पताल में मरीजों को कितनी सुविधा मिलती है इसकी जानकारी करने जब मुख्य चिकित्सा अधीक्षक के पास पहुंचे तो उनके कमरे में ताला बंद मिला।
फुटपाथ पर लेटाकर चढ़ाया जा रहा आक्सीजन
गोरखपुर की दास्तां सुनकर आपका दिल दहल गया होगा लेकिन, कानपुर की ये तस्वीर भी आपको बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देगी। ये नजारा कानपुर मेडिकल कॉलेज पुल के नीचे का है। यहां एक भाई ने अपनी बीमार बहन पुष्पा को हथठेले पर लेटाया हुआ है। पुष्पा को आक्सीजन चढ़ाया जा रहा है और आसपास फलों का ठेला लगाने वाले सभी उसकी तीमारदारी में जुटे हैं। पुष्पा के लिये ऐसे हालात बने हैं क्योंकि उसे मेडिकल कालेज से सम्बद्ध मुरारीलाल चेस्ट हास्पिटल में एक बेड मयस्सर नहीं हो सका है। पुष्पा के दोनों फेफड़ें खराब हो चुके हैं और उसे जिंदा रखने के लिए लगातार ऑक्सीजन चढ़ाया जाना जरूरी है।
कुछ महीने पहले उसे इस चेस्ट अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन बाहर से दवा खरीदने के लिये जब पैसे नहीं बचे तो 19 जुलाई को डॉक्टर ने उसे बाहर निकाल दिया। बीमारी से तड़पती अपनी बहन का जीवन बचाने के लिये भाई भूरा के पास कोई चारा नहीं बचा तो उसने अस्पताल के पास फुटपाथ पर हथठेला को अपनी बहन का बिस्तर बना दिया और तब से वहीं पर उसे ऑक्सीजन चढ़ाया जा रहा है।
10 हजार रूप्ए का खरीदता है सिलेंडर
हर पन्द्रह दिन में वो इसी हथठेला को खींचकर अस्पताल ले जाता है, अपनी बहन को दिखाता है और वापस फिर इसी फुटपाथ पर लाकर आक्सीजन नली उसकी नाक पर लगा देता है। वो बाजार से 10 हजार रूपए का सिलेंडर खरीदता है। मच्छरों से बचाने के लिये उसने बिस्तर के चारों तरफ मच्छरदानी लगा दी है और पानी बरसने पर वो उसके उपर पालीथीन डाल देता है। एक तरफ भूरा ग्राहकों को निपटाता है तो दूसरी तरफ अपनी बहन की तमीरदारी भी करता रहता है। हालॉकि अस्पताल के स्टोर में आक्सीजन सिलेण्डर भरे पड़े हैं, लेकिन भूरा की यह रसीद इस बात का सबूत है कि इस गरीब ने अपनी जेब से दस हजार खर्च करके आक्सीजन सिलेण्डर खरीदा है और हर तीसरे दिन वो ढाई सौ रूपये चुकता करके सिलेण्डर रिफिल कराता है।
कुछ इस तरह से बोले जिम्मेदार
किसी बड़े सरकारी अस्पताल में मरीज को आक्सीजन न मिले, उसे अपनी जेब से दस हजार खर्च करके आक्सीजन सिलेण्डर प्राईवेट सप्लायर से खरीदना पड़े। अस्पताल के पास फुटपाथ पर लेटा कर ऑक्सीजन चढाना पड़े, तो क्या यह नजारा अस्पताल आते जाते डाक्टरों की नजर में नहीं आया होगा। इस मामले में पुष्पा को अस्पताल से डिस्चार्ज करने वाले डाक्टर संजय वर्मा से बात की तो उन्होने सफाई दी कि 19 जुलाई को अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद मरीज कभी लौटकर उनके पास नहीं आया। अगर उसे डाक्टरों से कोई शिकायत थी तो उसने ऊपर के अधिकारियों से शिकायत क्यों नहीं की। लेकिन डॉक्टर वर्मा का पहला दावा खोखला साबित करने के लिये अस्पताल का वो पर्चा काफी है जिसमें पुष्पा को अस्पताल में दोबारा दिखाने की तारीख दो अगस्त दर्ज है।

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