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कानपुर

प्रदूषण और कबूतरों ने मिलकर शहर को दी लाइलाज बीमारी, स्वास्थ्य विभाग अलर्ट

प्रदूषण को लेकर लापरवाही अब शहरवासियों पर भारी पडऩे वाली है. प्रदूषण और कबूतरों की वजह से फेफड़ों से जुड़ी एक नई बीमारी शहर को अपने चंगुल मे तेजी के साथ जकड़ रही है. इससे जुड़ी खास बात यह है कि यह किसी को भी हो सकती है.

कानपुरDec 08, 2018 / 11:50 am

आलोक पाण्डेय

Kanpur

प्रदूषण और कबूतरों ने मिलकर शहर को दी लाइलाज बीमारी, स्वास्थ्य विभाग अलर्ट

कानपुर। प्रदूषण को लेकर लापरवाही अब शहरवासियों पर भारी पडऩे वाली है. प्रदूषण और कबूतरों की वजह से फेफड़ों से जुड़ी एक नई बीमारी शहर को अपने चंगुल मे तेजी के साथ जकड़ रही है. इससे जुड़ी खास बात यह है कि यह किसी को भी हो सकती है. डीजल वाहनों के फाइन पार्टिकल्स, कबूतरों के पंख व उनकी बीट इस बीमारी की सबसे बड़ी वजह है. बीमारी के इलाज को लेकर अभी न तो ज्यादा दवाएं हैं और न लाइन ऑफ ट्रीटमेंट है. जागरूकता की कमी के चलते न तो ज्यादा मरीज इस बीमारी को पहचान पाते हैं और न ही डॉक्टर्स इसे जान पाते हैं.
आईएलडी में देश में तीसरा नंबर
मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्राचार्य व वरिष्ठ छाती रोग विशेषज्ञ डॉ. एसके कटियार ने बताया कि आईएलडी यानी कि इंटरस्टीशियल लंग्स डिसीज़ शहर में तेजी के साथ फैल रहा है. पहले यह काफी रेयर बीमारी थी. टीबी चेस्ट स्पेशलिस्ट की सोसाइटी की तरफ से जब इसको लेकर पड़ताल की गई तो कानपुर में छह महीनों में ही इसके सवा सौ से ज्यादा मरीज मिले. डॉ. कटियार के मुताबिक आईएलडी के बढ़ते मामलों को लेकर कानपुर देश का तीसरा सबसे बड़ा शहर है.
इनका रहा है अहम रोल
डॉ. कटियार के मुताबिक आईएलडी का पता एडवांस स्टेज में चलता है. इसमें फेफड़ों में फाइब्रोसिस होती चली जाती है. इसमें लंग्स की फ्लैक्सिबिलिटी खत्म हो जाती है. यह सीओपीडी से भी खराब बीमारी है, जिसमें एंटीजिंस डेवलप हो जाते हैं. देश में इस बीमारी के ट्रीटमेंट को लेकर गाइड लाइन बनाने का काम शुरू हुआ है. आईएलडी का समय पर पता चले तो इसे कंट्रोल करने की संभावना है, लेकिन खत्म कभी नहीं होती.
ऐसा कहते हैं विरष्‍ठ छाती रोग विशेषज्ञ
इस बारे में वरिष्‍ठ छाती रोग विशेषज्ञ डॉ. एसके कटियार कहते हैं कि लंग्स से जुड़ी यह बीमारी तेजी के साथ फैल रही है. उन्‍होंने बताया कि उनके यहां ही हर रोज 4 से 5 नए मरीज आ रहे हैं. परेशानी की बात यह है कि इसे लेकर ज्यादा जागरूकता नहीं होने की वजह से इसका पता भी जल्दी नही चलता.

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