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करौली

पारिवारिक मजबूरी में खो रहा बचपन, बालश्रम पर नहीं रोक

Child labor is being lost due to family compulsion, no stop on child labor -कोरोना ने बढाए बालश्रम के आंकड़े
विश्व बाल श्रम निषेध दिवस पर विशेष

करौलीJun 12, 2021 / 10:58 am

Anil dattatrey

पारिवारिक मजबूरी में खो रहा बचपन, बालश्रम पर नहीं रोक

पारिवारिक मजबूरी में खो रहा बचपन, बालश्रम पर नहीं रोक



हिण्डौनसिटी. इंसान के जीवन का सबसे हसीन समय है बचपन। ना तो किसी बात की चिंता और ना ही कोई जिम्मेदारी। हर समय मस्ती भरी हंसी-ठिठौली, खेलना-कूदना और पढऩा। लेकिन सबका बचपन एक जैसा हो यह भी जरूरी नहीं।
परिवार की आर्थिक तंगी के साथ बेबसी और लाचारी के अलावा परिजनों की प्रताडऩा के कारण कुछ बच्चों की जिंदगी बालश्रम के दलदल में धंसता चला जाता है। ऐसे बच्चों का बालपन विद्यालय में पोथी-पन्नों और मित्रों के बीच नहीं, बल्कि दूसरों के घर, होटल, ढाबों से लेकर औद्योगिक कारखानों में बर्तन साफ करने से लेकर झाड़ू-पोंछा लगाने और छैनी, हथौड़ा, औजारों के बीच बीतता है।

पूरा देश इस समय कोरोना महामारी के कारण आर्थिक संकट से गुजर रहा है। उद्योग-धंधों के साथ रोजगार चौपट होने से सबसे ज्यादा प्रभावित निचले तबके के लोग ही हुए है। यही वजह है कि एक साल में ही बाल श्रमिकों की तादाद काफी बढ़ गई है।
केंद्र से लेकर राज्य सरकार बाल मजदूरी के कानून के तहत काफी योजनाओं को लागू तो करतीं है, लेकिन इन योजनाओं को अमलीजामा पहनाने बाले सरकार के नुमाइंदे ही इन गरीब बाल मजदूरों की योजनाओं व पुनर्वास के मिलने वाली सुविधाओं को योजनाबद्ध तरीके से डकार जाते है। सिस्टम की उदासीनता का भुगतान बच्चों को मजदूरी कर चुकाना पड़ता है।
यह है विश्व बाल श्रम निषेध दिवस-
बच्चों को उनके बचपन से वंचित करना सबसे बड़ी कू्ररता है। पढाई- लिखाई की उम्र में बच्चे मजदूरी कर बचपन खो देते हैं। कागजों में भले ही बालश्रम के खिलाफ आवाजें उठती हों, लेकिन हकीकत देखी जाए तो सवा लाख की आबादी वाले हिण्डौन शहर में हजारों बच्चे बालश्रम करने को मजबूर है। अपने हक से वंचित शोषण का शिकार हो रहे इन बच्चों की आवाज बुलंद करने के लिए ही प्रत्येक वर्ष 12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जाता रहा है।

बाल श्रम पर क्या कहता है कानून-
बाल श्रम बच्चों के मानसिक, शारीरिक, आत्मिक, बौद्धिक एवं सामाजिक हितों को प्रभावित करती है। जो बच्चे बाल मजदूरी करते हैं, वे मानसिक तौर पर अस्वस्थ व शारीरिक रुप से कमजोर रहते हैं। बच्चों कोउनके अधिकारों से वंचित करना मानवाधिकार का सबसे बड़ा उल्लंघन है। बाल श्रम निषेध और नियमन अधिनियम के तहत 14 साल से कम उम्र का किसी भी बच्चे से फैक्ट्री, खदान जैसे खतरनाक उद्योगों में काम नहीं कराया जा सकता। कठोर कानून के बावजूद होटलों, ढाबे और दुकानों में बच्चों से दिन रात काम कराया जाता है।
हैल्पलाइन पर दर्ज हुए 16 प्रकरण-
एकट बोधग्राम द्वारा संचालित चाइल्ड लाइन 1098 के कार्यक्रम प्रभारी मनोज कुमार शर्मा ने बताया की वर्ष 2020 में बालश्रम के पांच व भिक्षावृति के 11 प्रकरण दर्ज हुए। जिसमे पुलिस के सहयोग से बाल कल्याण समिति के समक्ष पेश कर अभिभावको को पाबंद कराया गया।
इनका कहना है-
बाल कल्याण समिति के साथ ही मानव तस्करी यूनिट और श्रम कल्याण अधिकारी द्वारा समय-समय पर बालश्रम की पड़ताल कर बाल मजदूरों को मुक्त कराया जाता है। साथ ही शिक्षा से जोडऩे के लिए परिजनों को पाबंद किया जाता है। –
विनोद कुमार जाटव, अध्यक्ष, बाल कल्याण समिति, करौली।
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