बुधवार सुबह बहादुर सिंह के शव को दाहसंस्कार के लिए गांव के श्मशान ले जाया गया, जहां परिजनों में चिता को मुखाग्नी देने को लेकर विवाद हो गया। मृतक का सबसे छोटा भाई भूपेश अपने पुत्र कुणाल से मुखाग्निी दिलाना चाहता था।
उसका कहना था कि बहादुर सिंह ने मरने से पहले उसके पुत्र कुणाल को दत्तक पुत्र बनाया था। जबकि अन्य भाई वीरेन्द्र सिंह, उपेन्द्र सिंह, अनिरूद्ध व ओमवीर कुणाल से मुखाग्निी दिलाने का विरोध कर रहे थे। अन्य भाई गोदनामे को कथित बताते हुए उस सामाजिक नियम का हवाला दे रहे थे, जिसमें अविवाहित परिजन की मृत्यु पर परिवार के बड़े भाई का बड़ा पुत्र ही मुखाग्निी देता है।
दाह संस्कार में शामिल हुए ग्रामीणों ने भी पुलिस को पूछताछ में बताया कि उनके सामने बहादुर सिंह के मरने से पहले कोई गोदनामे की रस्म नहीं हुई। सहायक निरीक्षक युधिष्ठर सिंह ने बताया कि मुखाग्निी देने का भाइयों व उनके पुत्रों में विवाद इस कदर बढ़ गया कि श्मशान में अर्थी के पास ही सभी भाई आपस में झगड़ा करने लगे और चिता के लिए लाई गई लकडिय़ों को लेकर एक-दूसरे पर वार करने लगे। सूचना पर पहुंची पुलिस ने मामला शांत कराया।
उन्होंने बताया कि मृतक का दाहसंस्कार हो, इसके लिए समझाइस की गई कि भूपेश के पुत्र कुणाल और बड़े भाई वीरेन्द्र सिंह के बड़े पुत्र गौरव मिलकर चिता का मुखाग्निी दें। इस बात पर सभी भाई राजी हो गए। सभी भाइयों ने मृतक का पोस्टमार्टम स्वेच्छा से नहीं कराने का पुलिस को लिखित पत्र दिया।