शाम पांच बजे मंदिर से हुरियारे उतरेंगे। इसके बाद गोपियां हुरियारों पर लाठियां बरसाएंगी। माना जाता है कि लठमार होली की परंपरा 16वीं सदी से शुरू हुई है। साहित्यकार स्व. गोपाल प्रसाद व्यास ने ब्रज की रंगीली होली में लठमार के बारे में लिखा है।
उन्होंने लिखा है कि गुलामी के दौर में महिलाएं सुरक्षित नहीं थी। इसलिए ब्रज के पुरुषों ने महिलाओं को लाठी चलाने में प्रशिक्षित किया गया। आगे चलकर यह लठमार होली हो गई। द्वापर के होली साहित्य में कहीं भी लठामार के पद, गीत नहीं हैं।
इससे पहले लठामार रंगीली होली के लिए राधा रानी की ओर से कान्हा के लिए आमंत्रण लेकर राधा दासी गई। वृंदावन के गोपाल घाट पर रहने वाली राधा दासी पिछले बारह वर्ष से इस कार्य को करती चली आ रही है। राधा दासी को यह कार्य अपनी
गुरु श्यामा दासी से उत्तराधिकार में मिला है। राधा दासी अपने साथ एक अबीर गुलाल से भरी हांडी के साथ भोग प्रसाद, इत्र फुलेल व पान का बीड़ा लेकर जब रंगीली गली से होकर निकली तो उसे देखने के लिए श्रद्धालु उमड़ पड़े। राधादासी का नंदगांव पहुंचने पर गोस्वामी समाज द्वारा भव्य स्वागत किया गया।
वहीं हिंडौन में अग्रवालमहिला समाज की ओर से यहां कटरा बाजार स्थित अग्रवाल धर्मशाला में फागोत्सव कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें होली गीतों की प्रस्तुति देते हुए महिलाओं ने नृत्य किया।