लापरवाही की बानगी है कि क्षय निवारण केन्द्र पर दवा खत्म हुए दो माह बीत चुके हैं, लेकिन दवाओं की व्यवस्था के प्रति जिम्मेदार चिकित्सकों द्वारा गंभीरता नहीं दशाई जा रही है। जबकि सरकार ने दवाई की कमी पडऩे पर स्थानीय स्तर पर दवाई के प्रबंध तत्काल करने के आदेश दिए हुए हैं। लेकिन चिकित्सकों द्वारा टेण्डर जारी करने और किसी फर्म की ओर से टेण्डर नहीं डालने की कहकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ा जा रहा है।
टीबी क्लिनिक सूत्रों के अनुसार एमडीआर कोर्स की दो आवश्यक दवाएं सायक्लोसेरिन एवं पायरिडोक्सिन टेबलेट दो माह से उपलब्ध नहीं है, जिससे क्षय रोगियों का उपचार आधा-अधूरा ही हो पा रहा है। इनकी एवज में विटामिन की गोली देकर रोगियों को टरकाया जा रहा है।
जानकार बताते हैं कि एमडीआर की सायक्लोसेरिन दवा छूटने से टीबी रोगियों को दिया जाने वाला कोर्स पूरी तरह सफल भी नहीं हो पाता। जानकार बताते हैं कि इस कारण टीबी रोग की प्रतिरोधक क्षमता विकसित नहीं होने पर रोगी को अधिक प्रतिरोधक क्षमता वाली दवाइयां लेनी पड़ेंगी।
इसके चलते सरकार का एमडीआर पर किया जाने वाला खर्चा भी बढ़ेगा। वही दी जानी वाली दवाएं भी कारगर नहीं हो पाती। सूत्र बताते हैं कि लम्बे समय से एमडीआर कोर्स ले रहे रोगियों को सायक्लोसेरिन टेबलेट बंद करने के बाद उनका 6 माह से डेढ़ साल तक एमडीआर कोर्स लेना भी पूरी तरह फायदेमंद नहीं रहेगा।
नहीं हो रही सप्लाई
करौली के जिला क्षय रोग निवारण अधिकारी डॉ. विजयसिंह मीना इन दवाओं के लिए कई बार उच्च स्तर पर पत्र भेजे गए हैं, लेकिन सप्लाई नहीं हो पा रही। दवाओं के लिए टेण्डर भी किए, लेकिन प्रक्रिया भी पूरी नहीं हो पाई। हम गुजरात से दवाएं मंगाने के लिए लगातार संपर्क कर रहे हैं।