गुढ़ाचन्द्रजी निवासी मेडिय़ा बाबूलाल सैनी का कहना है कि लोकगीतों में भारतीय संस्कृति झलकती है। लोकगीतों को बनाने के बाद पहले रगगी (अभ्यास) किया जाता है। इसके बाद गीत गाया जाता है। लोकगीतों से नई पीढ़ी को भारतीय संस्कृति का ज्ञान व पौराणिक कथाओं का ज्ञान सिखने को मिलता है।
झलकता है साम्प्रदायिक सौहार्द
तिमावा निवासी मेडिय़ा रामरतन मीना का कहना है कि उनका मुख्य व्यवसाय तो कृषि है। लेकिन गर्मियों में किसान वर्ग खेती-बाड़ी से निवृत होकर गीत गाते है। घेरे, नौबत, मंजीरे व हरमोनियम आदि से गीत गाए जाते है। सभी समाज के लोग एक जाजम पर बैठकर गीत गाते है। इससे भाईचारे के साथ साम्प्रदायिक सौहार्द भी झलकता है।
बढ़ता है भाईचारा
गोरड़ा निवासी मेडिय़ा जैला मीना का कहना है कि सुरवंदा, तोड़, जकड़ी, झक्कड़, दुबेला आदि से गीत बनता है। लोकगीत में ४-५ मुख्य कलाकारों के अलावा ६०-७० अन्य कलाकार मिलकर गीत गाते है। इससे आपसी द्वेष की भावना मिट जाती है। वही लोगों में भाईचारे की भावना विकसित होती है।