फसलों को सूखे से निजात दिलाने के लिए माइनर के माध्यम से गांव तक नहर नाली से पानी पहुंचने की योजना था। इस नहर के पानी से आसपास के कई एकड़ भूमि को सिंचाई किए लिए पानी मिल सकता है, लेकिन विभाग के उदासीन रवैया के कारण पानी गांव तक नहीं पहुंच पा रही है। बांध से सिंचाई व निस्तारी के लिए पानी छोड़ी तो जाती है, लेकिन क्षतिग्रस्त नहर व इसमें बनाएं पुलिया के कारण पानी कुछ दूरी तक ही पहुंच पाता है। इसके चलते किसानों की उम्मीद टूटती जा रही है। विभाग मरम्मत पर ध्यान नहीं दे रही है।
सिंचाई के लिए बनाएं इस तरह के नहर नाली की दशा दयनीय स्थिति एक कारण अरसे से नहर नाली का मरम्मत न हो पाना है। रिपेयरिंग के अभाव में एक निश्चित दुरी पर बनाए मिनी पुल के अस्तित्व खतरे में है। इस तरह की जिवंत नमूना पिपरिया से मानिकचौरी नहर नाली सहित कई गांवों में देखा जा सकता है। इनकी साफ सफाई का जिम्मा विभाग का होता है। ऐसे में केवल पानी छोडऩे के समय विभाग बन कचरे की सफाई कर महज औपचारिकता पूरी करते हैं। जबकि नगह-नाली ही क्षतिग्रस्त हो चुके हैं।
इस तरह के नहर नाली से हर साल एग्रीमेंट के तहत सैंकड़ों एकड़ भूमि को सिंचित करने के लिए पानी छोड़ी जाती है। इसके एवज में सिंचाई विभाग को किसानों से मोटी रकम राजस्व भी प्राप्त होता है। इसके बाद भी नहर में बने पुराने जर्जर पुल को मरम्मत कराने के लिए उदासिनता बरती जा रही है, जिससे पानी का एक हिस्सा ब्यर्थ बह जाती है। अगर इस तरह के पुल को दुरुस्त करा दिया जाए तो विभाग हर साल पानी का समुचित उपयोग कर पाता।