बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं औंकारेश्वर
दुनियाभर में भगवान शिव के कई प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर हैं, लेकिन औकार के आकार की पहाड़ी पर बसे औंकारेश्वर मंदिर की बात कुछ अलग ही है। मान्यता के अनुसार इस मंदिर में रोज को भगवान शिव और पार्वती यहां आकर चौसर-पांसे खेलते हैं। यह सिलसिला सदियों से चला आ रहा हैं। ओम के आकार की पहा़ड़ी पर बसा मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इसके दर्शन के बिना चारों धाम की यात्रा अधूरी मानी जाती है। पुराणों के अनुसार इस मंदिर की स्थापना राजा मांधाता ने की थी । वे भगवान राम के पूर्वज थे। यह मंदिर वेद कालीन है।
नर्मदा के तट पर स्थित है ज्योतिर्लिंग
बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक ये शिवालय मध्य प्रदेश में पवित्र नर्मदा नदी के तट पर स्थित है। इस स्थान पर नर्मदा के दो धाराओं में विभक्त हो जाने से बीच में एक टापू-सा बन गया है। टापू को मान्धाता-पर्वत या शिवपुरी कहते हैं। नदी की एक धारा इस पर्वत के उत्तर और दूसरी दक्षिण होकर बहती है। दक्षिण वाली धारा ही मुख्य धारा मानी जाती है। इसी मान्धाता-पर्वत पर श्री ओंकारेश्वर-ज्योतिर्लिंग का मंदिर स्थित है।
पृक्रति ने किया है इसका निर्माण
पूर्वकाल में महाराज मान्धाता ने इसी पर्वत पर अपनी तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न किया था। इसी से इस पर्वत को मान्धाता-पर्वत कहा जाने लगा। इस ज्योतिर्लिंग-मंदिर के भीतर दो कोठरियों से होकर जाना पड़ता है। भीतर अंधेरा रहने के कारण यहां निरंतर प्रकाश जलता रहता है। ओंकारेश्वर शिवलिंग मनुष्य निर्मित नहीं है। स्वयं प्रकृति ने इसका निर्माण किया है। इसके चारों ओर हमेशा जल भरा रहता है। संपूर्ण मान्धाता-पर्वत ही भगवान् शिव का रूप माना जाता है। इसी कारण इसे शिवपुरी भी कहते हैं लोग भक्तिपूर्वक इसकी परिक्रमा करते हैं। कार्त्तिकी पूर्णिमा और महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां बहुत भारी मेला लगता है। यहां लोग भगवान् शिवजी को चने की दाल चढ़ाते हैं रात्रि की शिव आरती का कार्यक्रम बड़ी भव्यता के साथ होता है।
दो रूपी है ओंकारेश्वर-ज्योतलिंग
इस ओंकारेश्वर-ज्योतलिंग के दो स्वरूप हैं। एक को ममलेश्वर के नाम से जाना जाता है। यह नर्मदा के दक्षिण तट पर ओंकारेश्वर से थोड़ी दूर हटकर है पृथक होते हुए भी दोनों की गणना एक ही में की जाती है। शिवलिंग के दो स्वरूप होने की कथा पुराणों में इस प्रकार दी गई है- एक बार विन्ध्यपर्वत ने पार्थिव-अर्चना के साथ भगवान् शिव की छः मास तक कठिन उपासना की। उनकी इस उपासना से प्रसन्न होकर भूतभावन शंकर जी वहां प्रकट हुए। उन्होंने विन्ध्य को उनके मनोवांछित वर प्रदान किए। विंध्याचल की इस वर-प्राप्ति के अवसर पर वहां बहुत से ऋषि गण और मुनि भी पधारे। उनकी प्रार्थना पर शिवजी ने अपने ओंकारेश्वर के दो भाग किए। एक का नाम ओंकारेश्वर और दूसरे का अमलेश्वर पड़ा। दोनों लिंगों का स्थान और मंदिर पृथक् होते भी दोनों की सत्ता और स्वरूप एक ही माना गया है। शिवपुराण में इस ज्योतिर्लिंग की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। श्री ओंकारेश्वर और श्री ममलेश्वर के दर्शन का पुण्य बताते हुए नर्मदा-स्नान के पावन फल का भी वर्णन किया गया है।
चौसर-पांसे खेलने आते हैं शिव-पार्वती
ऐसी मान्यता है कि रोज रात में भगवान शिव और पार्वती इस मंदिर में आते है और यहां चौसर-पांसे खेलते हैं। यही कारण है कि रात में मंदिर के गर्भगृह में ज्योतिर्लिंग के सामने रोज चौसर-पांसे की बिसात सजाई जाती है। ये परंपरा मंदिर की स्थापना के समय से ही चली आ रही है। कई बार ऐसा हुआ है कि चौसर और पांसे रात में रखे स्थान से हटकर सुबह दूसरी जगह मिले। ओंकारेश्वर शिव भगवान का अकेला ऐसा मंदिर है जहां रोज गुप्त आरती होती है। इस दौरान पुजारियों के अलावा कोई भी गर्भगृह में नहीं जा सकता। इसकी शुरुआत रात 8:30 बजे रुद्राभिषेक से होती है। अभिषेक के बाद पुजारी पट बंद कर शयन आरती करते हैं। आरती के बाद पट खोले जाते हैं और चौसर-पांसे सजाकर फिर से पट बंद कर देते हैं। साल में एक बार शिवरात्री के दिन चौसर पांसे की पूरी बिसात बदल दी जाती है, इस दिन भगवान के लिए नए चौसर-पांसे लाए जाते हैं।
महाशिवरात्रि पर खास
महाशिवरात्रि के महापर्व पर भगवान को 251 किलो पेड़े का महाभोग लगाया जाता है। बड़ी संख्या में मालवा-निमाड़ सहित देशभर से श्रद्धालु महाशिवरात्रि पर दर्शन के लिए ओंकारेश्वर आते हैं । इसे देखते हुए मंदिर ट्रस्ट और प्रशासन के अलावा अन्य संगठन भी यहां अबनी सेवाएं देते हैं। तीर्थनगरी में महाशिवरात्रि पर श्रद्धालु नर्मदा स्नान कर भगवान ओंकारेश्वर व ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के बाद ओंकार पर्वत की परिक्रमा करते है। अनेकं मठ-मंदिरों व आश्रम-अखाड़ों में भी भक्तों द्वारा महाशिवरात्रि का महापर्व पूर्ण आस्था व श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। अनेक स्थानों पर साबूदाने की खिचड़ी और सिंघाड़े के हलवे की प्रसादी का वितरण की व्यवस्था होती है। महाशिवरात्रि पर भगवान ओंकारेश्वर और ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के पट आम दिनों की तुलना में एक घंटा पहले सुबह चार बजे ही श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खोल दिए जाते हैं। महाशिवरात्रि पर्व पर आने वाले भोले के भक्त तीनों पहर 24 घंटे भगवान के दर्शन और मूलस्वरूप पर जल अर्पित करने की व्यवस्था होती है। साथ ही, दिनभर पूजा-अर्चना का दौर का दौर चलता है। भगवान ओंकारेश्वर और ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग की नगरी में बने मठ-मंदिरों, आश्रमों-अखाड़ों में महाशिवरात्रि पर्व को मनाने के लिए भक्तों के आने का सिलसिला शिवरात्रि को दो-तीन दिन पहले आना शुरू हो जाता है। भक्तों द्वारा साबूदाने की फलहारी खिचड़ी, सिंघाड़े के आटे का हलवा बनाकर ओंकारेश्वर आने वाले श्रद्धालुओं को प्रसादी वितरित की जाती है। ऐसी मान्यता है कि यहां पूजा, अर्चना और रुद्राभिषेक करने से हर मनोकामना पूरी होती है।