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खंडवा

कुपोषित बच्चों में पांच साल के बाद नहीं हो रही ग्रोथ

कुपोषण पर तो पाया काबू, लेकिन नहीं सुधार पाए बच्चों का स्वास्थ्य-कुपोषण से बाहर आए बच्चे, नहीं कर पा रहे मानसिक, शारीरिक वृद्धि-जिले में 35 प्रतिशत बच्चे वृद्धिबाधित, 49 प्रतिशत कम वजन के

खंडवाJun 24, 2022 / 10:48 pm

मनीष अरोड़ा

कुपोषित बच्चों में पांच साल के बाद नहीं हो रही ग्रोथ

खंडवा. पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती कुपोषित बच्चे।

खंडवा.
कुपोषण को लेकर कुख्यात रहे खंडवा जिले में पिछले पांच साल में कुपोषण की स्थिति सुधरी है, लेकिन कुपोषण से बाहर आए बच्चों का स्वास्थ्य सुधारने में स्वास्थ्य विभाग सफल नहीं हो पाया है। कुपोषित रहे बच्चों का पांच साल के बाद शारीरिक और मानसिक वृद्धि में कमी देखी जा रही है। ये खुलासा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5 की रिपोर्ट में हुआ है। जिले में अब भी 35 प्रतिशत बच्चे वृद्धि बाधित है, यानि कि इन बच्चों की लंबाई औसत से कम बढ़ रही है।
एनएफएचएस-5 के सर्वे अनुसार जिले में कुपोषण का ग्राफ कम हुआ है। पांच साल पहले जिले में कुपोषण का आंकड़ा 60 प्रतिशत था, जो कि अब 49 प्रतिशत हो गया है। यानि कि 11 प्रतिशत बच्चों को कुपोषण की श्रेणी में आने से रोका गया है। वहीं, कुपोषण के चलते बच्चों की लंबाई और मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रभाव देखा गया है। कुपोषण के चलते बच्चों की वृद्धि बाधित हो रही है। जिले में 35 प्रतिशत बच्चे वृद्धि बाधित है, यानि एक तिहाई बच्चों की ग्रोथ रुक गई है। वहीं, कम वजन की श्रेणी में जिले के 49 प्रतिशत बच्चे अभी भी जीवन से संघर्ष कर रहे है। इसमें भी 28 प्रतिशत बच्चे सूखे है। यानि कि इन बच्चों को पोषण आहार की जरुरत पूरी नहीं हो पाई।
कम क्षमताओं वाले व्यस्क बनते वृद्धि बाधित
वृद्धि बाधिता कुपोषण का एक गंभीर प्रकार है। वृद्धि बाधिता का संकेत होता है कि क्षेत्र में भोजन और पोषण की गंभीर कमी बनी हुई है। यह बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास में रोड़ा बन जाता है। यदि बच्चा इससे जीवन के पहले 5 वर्षों में बाहर नहीं आ पाया तो फिर जीवन भर इसकी भरपाई नहीं हो पाती। वह कम क्षमताओं वाला वयस्क बन जाता है, जो प्रतियोगिताओं में टिक नही पाता।
एनआरसी तक नहीं आना चाहते माता-पिता
कुपोषण को रोकने के लिए जिले में चार पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) बनाए गए है। जिनमें गंभीर कुपोषित बीमार बच्चों को भर्ती कर 15 दिन इलाज के साथ पोषण आहार दिया जाता है। यहां से ठीक होकर जाने के बाद आंगनवाडिय़ों के माध्यम से बच्चों को पोषण आहार वितरित किया जाता है। सबसे बड़ी समस्या ये है कि इन एनआरसी तक आदिवासी अंचल के माता-पिता अपने बच्चों को लाना नहीं चाहते है। कई बार तो आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के इन्हें केंद्र तक लाने के बाद ये बिना इलाज के वापस चले जाते है। इसका कारण 15 दिन तक केंद्र पर रुकने से मजदूरी का नुकसान बताते है।
कुपोषण का करते इलाज
गंभीर कुपोषित बच्चों का इलाज एनआरसी में किया जाता है। यहां से बच्चे को कुपोषण से बाहर आने के बाद ही घर भेजा जाता है। वृद्धि बाधिता के लिए कोई कार्यक्रम स्वास्थ्य विभाग के पास नहीं है।
डॉ. भूषण बांडे, एनआरसी प्रभारी



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