इससे पहले शनिवार को रेशम किसान और मजदूरों ने रैली निकाली तथा नारेबाजी के साथ ही पीड़ा बयां की। जो न माने झंडे से, वो मानेगा डंडे से…, किसान-मजदूर भाई-भाई, हम लेंगे पाई-पाई…, अभी तो ये अंगड़ाई है, आगे और लड़ाई है… और हम अपना अधिकार मांगते, नहीं किसी से भीख मांगते… जैसे नारों की गूंज के बीच रेशम किसान और मजदूरों ने जिला पंचायत से रैली निकाली और एसडीएम कार्यालय तक पहुंचे। यहां उन्होंने सांकेतिक फांसी लगाकर राष्ट्रपति के नाम सौंपे ज्ञापन में सामूहिक इच्छामृत्यु मांगी। बता दें कि मनरेगा के तहत चार साल पहले रेशम कीट उत्पादन में मजदूरी करने, पौधे लगाने के बावजूद इन किसानों मजदूरी के लिए भटकना पड़ रहा है। एक सप्ताह से ये जिला पंचायत में डेरा डाले हुए हैं।
– प्रशासन ने मनरेगा अंतर्गत मजदूरी कार्य कराने के बाद भी अधिनियम का उल्लंघन करते हुए तीन वर्ष से भुगतान लंबित करके क्रूरता की है।
– प्रशासन ने खेतों में तैयार रेशम की फसलें नष्ट कराकर क्रूरता की है।
– प्रशासन ने प्रभावित किसानों को परंपरागत फसलोत्पादन व रेशम उत्पादन, दोनों फसलें प्राप्त करने वंचित कर दोहरा नुकसान किया है।
– लंबित भुगतान किया जाए।
– नष्ट फसलों का मुआवजा दिया जाए।
– प्रभावितों को पीडि़त किसान घोषित की जाए।
– पीडि़तों को रेशम उपयोजना से अलाभान्वित का प्रमाण पत्र दिया जाए। अब आगे ये चेतावनी
प्रभावितों ने कहा कि पीडि़त, गरीब, आदिवासी, वनों में निवासरत किसानों के लिए ये क्रूरता असहनीय है। रेशम विभाग किसानों की मांगों पर कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। इसलिए राष्ट्रपति से अनुरोध किया गया है कि पीडि़त किसानों को 30 जुलाई को कलेक्टोरेट खंडवा के सामने अपनी इच्छा से सामूहिक रूप से फांसी लगाकर क्रूरता से मुक्ति पाने की अनुमति प्रदान की जाए।