राजनीति के अलावा मेरे पास कोई और कौशल नहीं
राज्य के बहरमपुर संसदीय क्षेत्र से हार के एक दिन बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पांच बार के सांसद अधीर रंजन चौधरी ने बुधवार को कहा कि वे नहीं जानते कि उनका राजनीतिक भविष्य कैसा होगा। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष चौधरी को तृणमूल उम्मीदवार और पूर्व क्रिकेटर यूसुफ पठान ने 85,000 से अधिक मतों के अंतर से हरा दिया। चौधरी की पराजय के साथ ही कांग्रेस ने बहरमपुर पर अपनी राजनीतिक पकड़ खो दी, जो राज्य में कांग्रेस का अंतिम गढ़ था। पार्टी को केवल एक सीट मालदह दक्षिण पर जीत मिली है।
अपने बहरमपुर आवास पर बांग्ला टीवी चैनल से बात करते हुए चौधरी ने कहा कि उन्हें आशंका है कि आने वाला समय उनके लिए कठिन होगा। 68 साल के चौधरी ने कहा कि इस सरकार से लडऩे के प्रयास में मैंने अपनी आय के स्रोतों की अनदेखी की है। मैं खुद को बीपीएल (गरीबी रेखा से नीचे का) सांसद कहता हूं। राजनीति के अलावा मेरे पास कोई और कौशल नहीं है। इसलिए आने वाले दिनों में मेरे लिए मुश्किलें खड़ी होंगी और मुझे नहीं पता कि उनसे कैसे पार पाया जाए।
गठबंधन में टीएमसी की मौजूदगी पर आपत्ति नहीं
चुनाव के बाद ममता बनर्जी की ‘इंडिया’ गठबंधन के साथ निकटता पर बात करते हुए चौधरी ने कहा कि उन्होंने गठबंधन में टीएमसी की मौजूदगी पर कभी आपत्ति नहीं जताई। चौधरी ने कहा कि ममता बनर्जी के साथ गठबंधन का विरोध करते हुए पार्टी हाईकमान के समक्ष अपनी बात रखी है, क्योंकि उनका मानना है कि यह राजनीतिक आत्महत्या के समान होगा।
प्रदेश कांग्रेस प्रमुख का पद छोडऩे के संकेत
यह पूछे जाने पर कि क्या वे प्रदेश कांग्रेस प्रमुख के पद पर बने रहेंगे तो उन्होंने कहा कि मैंने चुनाव में अपनी हार स्वीकार कर ली है और पहले अपने नेताओं से इस पद के लिए मुझसे ज्यादा योग्य व्यक्ति को खोजने का आग्रह करते हुए अपना पद छोडऩा चाहता था। मैं सोनिया गांधी के अनुरोध पर रुका रहा। मुझे अभी तक अपने नेताओं की ओर से कोई फोन नहीं आया है। फोन आने पर मैं एक बार फिर पार्टी को अपनी इच्छा से अवगत कराऊंगा।
प्रचार के लिए किसी को न भेजना, पार्टी का विवेकाधिकार
चौधरी ने कहा कि बहरमपुर में प्रचार के लिए किसी नेता को न भेजना पार्टी का विवेकाधिकार है और इस बारे में वह कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते। उन्होंने कहा कि जब राहुल गांधी की पूरब-पश्चिम भारत जोड़ो यात्रा’ मुर्शिदाबाद पहुंची तो हमने उसमें हिस्सा लिया। हमारे पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने एक बार मालदह में प्रचार किया, लेकिन बहरमपुर कभी नहीं आए। यह हमारे केंद्रीय नेतृत्व का फैसला था, जिसके बारे में मुझे कुछ नहीं कहना है। साल 1999 से सांसद चौधरी के लिए यह शायद सबसे कठिन चुनावी मुकाबला था, जिसमें उन्हें गुजरात के रहने वाले पठान से शिकस्त का सामना करना पड़ा।