महिला अधिकारों की आवाज बनीं- महिलाओं की आवाज की प्रतीक रहीं रेणु महिलाओं के दामपत्य अधिकारों के लिए उन्होंने संसद के भीतर और बाहर मुखर होकर आवाज बुलंद की। दहेज प्रथा के खिलाफ उन्होंने लोकसभा में जोरदार भाषण भी दिया। 1964 में कम्युनिस्ट पार्टी के विभाजन के बावजूद रेणु अपनी पहचान भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सांसद के रूप में ही कायम रखा। 1967 और 1971 के लोकसभा चुनाव में वह माकपा उम्मीदवार से हार गईं। विदेश में छात्र आंदोलन की प्रतीक बनीं रेणु-
कोलकाता में साधन चंद्र ब्रह्म कुमारी राय के परिवार में 21 अक्टूबर 1917 में जन्मी रेणु की प्रारम्भिक शिक्षा सियालदह के निकट लोरेटो कॉन्वेंट स्कूल में हुई। उच्च शिक्षा के लिए उन्हें कैम्ब्रिज के न्यूनहेम कॉलेज में दाखिला होना पड़ा था। रेणु 1938 में वामपंथी लेखक रजनी पामदत्त के सम्पर्क में आई। छात्र जीवन में वे ब्रिटेन में भारतीय छात्रों के बनाए गए कम्युनिस्ट समूह में सक्रिय भूमिका निभाई थी। बाद में वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्य बनी। 1942 में दामपत्य सूत्र में बंधी-भारतीय संसदीय राजनीति में अपनी अहम छाप छोडऩे वाली बैरकपुर की भाकपा सांसद रेणु 1942 में पत्रकार निखिल चक्रवर्ती के साथ दामपत्य सूत्र में बंध गई। इसके बाद से उनकी राजनीतिक सक्रियता बढ़ती गई। विदेशों से उच्च शिक्षा पाने के बाद भारत लौटी रेणु कलकत्ता विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य की शिक्षा देने लगी। विश्वविद्यालय में अध्यापन के दौरान उन्होंने महिला आत्मरक्षा समिति का गठन किया।