लेकिन अब गंगा की हालत यह है कि उसका पानी पूर्ण रूप से प्रदूषित हो गया है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने गंगा की पवित्रता पर सवालिया निशान लगा दिया है। हाल ही में सीपीसीबी ने अपने एक शोध में बताया कि भारत में पवित्र माना जाने वाला गंगा का पानी, पीने तो क्या अब नहाने योग्य भी नहीं रह गया है। उनके अनुसार गंगा में फेकल कॉलीफॉर्म का स्तर 3 से 12 गुना बढ़ गया है। इसका स्तर ऐसे ही बढ़ता रहा, तो आने वाले दिनों में गंगा का पानी विभिन्न रोगों को उत्पन्न करने वाला जीवाणुओं का ठीकाना बन जाएगा।
गौर करने वाली बात यह है कि पश्चिम बंगाल के खागड़ा में फेकल कॉलीफॉर्म का स्तर सबसे अधिक पाया गया है।
– सिर्फ 18 स्थानों का पानी नहाने योग्य :-
उल्लेखनीय है कि देश के विभिन्न राज्यों से प्रवाहित होने वाली गंगा की शुद्धता को जांचने के लिए सीपीसीबी की ओर से गंगा के किनारे स्थित 86 लाइव मॉनिटरिंग स्टेश्नों में से केवल 7 ऐसे स्थान पाए गए हैं, जहां का पानी शुद्धीकरण के बाद पीने के काम में आ सकता है। जबकि 18 स्थानों पर नहाने योग्य पानी पाया गया है। शोध में पश्चिम बंगाल के डायमंड हार्बर का पानी पीने योग्य बताया गया है।
शोधकर्ताओं के अनुसार गंगा की इस परिस्थिति का मूल कारण निकासी व्यवस्था है। उनके अनुसार सरकार की कड़ाई के बाद गंगा तटों पर स्थित कल-कारखानों का कचड़ा तो शुद्ध होकर गंगा में फेका जाता है, लेकिन निकासी द्वारा सारा कचड़ा सीधे गंगा में जाता है।
– एनजीटी ने ठोका जुर्माना :-
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने गंगा की स्वच्छता पर विशेष ध्यान न देने और सरकारी योजनाओं के तहत कार्यों में लापरवाही पाए जाने को लेकर पश्चिम बंगाल सरकार को फटकार लगाई है। साथ ही 25 लाख रुपए का जुर्माना भी ठोका है। एनजीटी के अनुसार पश्चिम बंगाल सरकार ने गंगा स्वच्छता के 22 परियोजनाओं में से केवल तीन पर काम किया है। वहीं इस दौरान पड़ोसी राज्य बिहार और झारखंड सरकार को भी आड़े हाथों लिया है।
– गंगा का अस्तित्व खतरे में :-
पर्यावरणविद् सुभाष दत्त गंगा की स्वच्छता के लिए कई मुहिम चला चुके हैं। उनका मानना है कि हमारे यहां गंगा को स्वच्छ बनाने का लक्ष्य बहुत कठिन है। यहां प्राकृतिक समस्याओं से अधिक सालों से मनुष्यों से जनित कारणों की वजह से गंगा प्रदूषित हो रही है। बंगाल की लगभग 20 प्रतिशत आबादी नहाने-धोने के अथवा सभी कार्य के लिए सीधे तौर पर इसी पर निर्भर रहती है।
वहीं 100 से अधिक कैनल के माध्यम से शहर भर का कचड़ा यहीं जाता है। गंगा को स्वच्छ रखने के लिए प्रशासन को ध्यान देना चाहिए की सीवेज के पानी को बिना ट्रीट किए गंगा में नहीं जाने दिया जाए। इसके लिए बड़े पैमाने पर ड्रेनेज सीवरेज सिस्टम गंगा के दोनों किनारों पर बनाए जाने की जरूरत है। औद्योगिक कचरे पर नियंत्रण होना चाहिए। गंगा के किनारे कूड़ा नहीं जमा होने देना चाहिए।