Danger: यहां के कछुए की आधी प्रजातियां खतरे में
मीठे पानी के कछुओं की 12 में से आधी से अधिक प्रजातियां वैश्विक स्तर पर खतरे में हैं। भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (जेडएसआई) केएक अध्ययन में यह पता चला है।
Danger: यहां के कछुए की आधी प्रजातियां खतरे में
भारतीय प्राणी सर्वेक्षण के अध्ययन में खुलासा
कोलकाता. उत्तराखंड में मीठे पानी के कछुओं की 12 में से आधी से अधिक प्रजातियां वैश्विक स्तर पर खतरे में हैं। भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (जेडएसआई) केएक अध्ययन में यह पता चला है। जेडएसआई की वैज्ञानिक डॉ अर्चना बहुगुणा ने व्यापक सर्वेक्षणों के आधार पर कहा कि उत्तराखंड में कछुए की आधी से अधिक प्रजातियां आईयूसीएन रेड लिस्ट में खतरे वाले प्राणियों में शामिल हैं। यह अध्ययन मीठे पानी के कछुओं और उन पर आणविक अध्ययन करने में भी उपयोगी है।
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अंधाधुंध शिकार से गंभीर खतरा
भारतीय प्राणी सर्वेक्षण की निदेशक डॉ धृति बनर्जी ने कहा कि प्रदूषण, आवास का टूटना, भोजन के लिए अंधाधुंध शिकार और पारंपरिक चीनी चिकित्सा में इन जीवों के उपयोग के कारण इन्हें गंभीर खतरों का सामना करना पड़ता है।
उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में पाए जाने वाले अधिकांश कछुए वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत संरक्षित हैं।
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देश के अन्य हिस्सों में भी मौजूद
डॉ धृति बनर्जी ने कहा कि कछुए की ये प्रजातियां भारत के अन्य हिस्सों में भी मौजूद हैं। उन्हें देश के अन्य हिस्सों में मौजूद प्रजातियों से, विशेष रूप से पूर्वोत्तर भारत से अलग करने के लिए भौगोलिक आनुवंशिक हस्ताक्षर भी विकसित किया गया है। उन्होंने कहा कि यह कार्य कछुओं की विभिन्न प्रजातियों की पहचान करने और जब्त किए गए कछुए के मांस की उत्पत्ति का पता लगाने में उपयोगी है।
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औषधि में इस्तेमाल, कारोबार भी
माना जाता है कि पूर्वोत्तर क्षेत्र में कछुओं की विभिन्न प्रजातियां बड़ी संख्या में मौजूद हैं। औषधि में इस्तेमाल होने के साथ ही खोल के सजावट के लिए उपयोग के कारण इनका दुनिया के विभिन्न हिस्सों में भी कारोबार किया जाता है।
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