भाषा, संस्कृति एवं सभ्यता पर गौरव-बोध जागृत कराने की आवश्यकता
अपनी प्रसिद्ध कृति भारत-भारती में राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा है, भू-लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीलास्थल कहां? फैला मनोरम गिरि हिमालय और गंगाजल जहां। सम्पूर्ण देशों से अधिक किस भूमि का उत्कर्ष है, उसका कि जो ऋषिभूमि है, वह कौन? भारतवर्ष है।
भाषा, संस्कृति एवं सभ्यता पर गौरव-बोध जागृत कराने की आवश्यकता
75 वर्ष का सफर: सकारात्मक एवं रचनात्मक सक्रियता के साथ करना होगा कार्य डॉ. प्रेम शंकर त्रिपाठी, साहित्यकार अपनी प्रसिद्ध कृति भारत-भारती में राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा है, भू-लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीलास्थल कहां? फैला मनोरम गिरि हिमालय और गंगाजल जहां। सम्पूर्ण देशों से अधिक किस भूमि का उत्कर्ष है, उसका कि जो ऋषिभूमि है, वह कौन? भारतवर्ष है।
ऐसी भारतभूमि की आजादी का अमृत-वर्ष, उन क्रांतिकारियों को याद करने का पावन अवसर है, जिन्होंने अपने प्राण इसलिए हंसते-हंसते निछावर कर दिए ताकि हम आजाद भारत में सांस ले सकें। ये क्रांतिवीर हमारे इतिहास में अमर हैं, हमारे अमृत-पर्व का गर्व हैं। प्रणम्य हैं, हमारे वे राष्ट्रनायक, कवि, साहित्यकार, पत्रकार, कलाकार, समाजसेवी तथा असंख्य भारतवासी, जिन्होंने बेडिय़ों में जकड़ी भारतमाता को मुक्त करने के लिए स्वयं को खपा दिया। यह अमृत-वर्ष इन सभी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का पर्व है। पूजनीय हैं वे माताएं, जिनके सपूतों ने राष्ट्र की स्वाधीनता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। डॉ उर्मिलेश की मार्मिक पंक्तियां हैं, जिनकी कुर्बानी वतन की आरती से कम नहीं, याद उन वीरों की यारो, बंदगी से कम नहीं। जान देकर जो बचाते हैं वतन की आबरू, उनकी माता भी किसी देवी सती से कम नहीं।
आजाद भारत के 75 वर्षों में यदि एक ओर उपलब्धियों का उल्लास है तो दूसरी ओर कतिपय असफलताओं का अवसाद भी। इन दोनों का सम्यक् विवेचन करते हुए हमें आगामी दिनों में सकारात्मक एवं रचनात्मक सक्रियता के साथ कार्य करना है। अनुभवों से सीख लेकर हमें जागरूक रहना है। सचेत कर रही हैं कवि अटल विहारी वाजपेयी की दो पंक्तियां, जो पाया उसमें खो न जांय/जो खोया उसका ध्यान करें। शिक्षा, चिकित्सा, उद्योग, व्यापार, विज्ञान, तकनीक, खेल, संचार, कला , संस्कृति, साहित्य, संगीत आदि क्षेत्रों में अपनी सामथ्र्य को हमने प्रमाणित किया है। हमारी दक्षता और योग्यता ने सारी दुनिया में हमारे स्वाभिमान को प्रतिष्ठित किया है। कोरोना-काल में सजगता और आत्मानुशासन के साथ हमारी आस्था ने विश्व को चमत्कृत किया है। इस दिशा में निरन्तरता आवश्यक है। देश की भाषा, संस्कृति एवं सभ्यता पर गौरव-बोध जागृत करना आज के समय और समाज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। भारतीय जीवन-मूल्यों तथा आध्यात्मिक-ऊर्जा ने सारे विश्व का ध्यान आकृष्ट किया है। किशोर एवं युवा भारत इससे समृद्ध होकर कुंठा एवं निराशा से घिरे विश्व को नई दिशा दे सकता है। कविवर जयशंकर प्रसाद की पंक्तियां हर भारतवासी के मन-मस्तिष्क में अनुगुंजित होनी चाहिए, जिएं तो सदा इसी के लिए, यही अभिमान रहे यह हर्ष। निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष।
आजादी का यह अमृत-वर्ष 25 वर्ष बाद आनेवाली शताब्दी का संकल्प निर्धारित करने का हेतु बने। स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत के साथ जब समृद्ध भारत, स्वावलंबी भारत, स्वाभिमानी भारत, सुशिक्षित भारत , संस्कारी भारत और सर्वसमावेशी भारत का स्वप्न साकार होगा, तभी विश्व गुरु बनने का हमारा संकल्प साकार हो सकेगा।