पोस्ट में उन्होंने दावा किया कि विश्वविदयालय में जितने भी गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति हुई है वो सब कटमनी लेकर हुई है। यहां तक कि मुझे कोई अ’छा काम करने नहीं दिया। तत्कालीन परीक्षा नियामक ने भी कोई सहयोग नहीं किया। यदि किसी को विश्वविद्याालय में शोध करना है तो उसे सर कहकर कुछ लोगों के आगे पीछे घूमना होगा। वे नियुक्ति को लेकर किसी को अनुमति नहीं देते हैं क्योंकि शायद इससे कटमनी का खेल बंद हो जाएगा। देवाशीष मजूमदार ने कहा कि जिन लोगों ने उत्तर बंगाल कृषि विश्वविद्यालय के लिए जमीन दी थी, उन्हें कुछ नहीं मिला पर जिनका कोई योगदान नहीं है, उनके परिवार के परिजनों को नौकरी मिली है। इस तरह की कई बातें हैं।