हादसों का प्रदेश
एक के बाद एक घटनाओं-दुर्घटनाओं ने पश्चिम बंगाल को हादसों का प्रदेश बना दिया है। विपक्ष को जहां राज्य सरकार को घेरने का बड़ा मौका दे दिया है, वहीं २०११ में राज्य की सत्ता में आने के बाद ममता सरकार को पहली बार बैकफुट पर धकेल दिया है। गत ४ सितम्बर से हादसों का दौर शुरू हुआ है। पहले माझेरहाट ब्रिज ढह गया। हादसे में चार लोगों की जान चली गई, दक्षिण कोलकाता के लोगों को आवागमन को लेकर परेशानी हुई अलग से। फिर १६ सितम्बर को कोलकाता के बड़ाबाजार के बागड़ी मार्केट में भीषण आग लग गई। तीन दिनों तक आग जलती रही। व्यापारियों का न सिर्फ लाखों-करोड़ों का माल खाक हो गया, बल्कि दुर्गापूजा पर अच्छी कमाई की उम्मीदों पर पानी फिर गया। इस घटना के चार दिनों के बाद अर्थात २० सितम्बर को इस्लामपुर में कथित पुलिस फायरिंग में दो विद्यार्थियों की जान चली गई। इस कांड को लेकर पूरे प्रदेश में विपक्ष ने विरोध प्रदर्शन किया। प्रदेश भाजपा ने इस मसले पर बंगाल बंद बुलाया तथा कांड की सीबीआई जांच की मांग की।
इन घटनाओं से प्रदेश अभी उबरने का प्रयास कर ही रहा था कि दो अक्टूबर को कोलकाता के दमदम के नागेरबाजार में शक्तिशाली बम फट गया। इस घटना में ८ साल के एक बालक की जान चली गई, ९ जने जख्मी हो गए। इस घटना के दूसरे ही दिन कोलकाता मेडिकल कॉलेज अस्पताल में आग लग गई। आग से मरीजों तथा परिजनों में आतंक फैल गया। धुएं से एक वृद्ध मरीज की मौत हो गई। शुक्र है कि आग सुबह में लगी। यह आग रात में लगी होती तो न जाने कितने मरीजों की जान चली जाती है। अस्पताल में कई मरीज गंभीर हालत में भर्ती थे, जो खुद भाग भी नहीं सकते थे। अस्पताल के दवा विभाग में आग लगने से करोड़ों रुपए की दवाइयां खाक हो गईं, जो बची है वो अब इस्तेमाल करने लायक नहीं है।
इन घटनाओं-दुर्घटनाओं ने राज्य सरकार की कार्यशैली पर कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं। ब्रिज के कमजोर होने तथा टेंडर जारी होने के बाद भी माझेरहाट ब्रिज की मरम्मत सरकार समय पर नहीं करवा सकी, नतीजा ब्रिज ढह गया। फिर बागड़ी मार्केट में लगी भीषण आग भी कहीं न कहीं लापरवाही की ओर से इशारा कर रही है। प्राथमिक जांच में सामने आई है कि मार्केट में अग्निशमन की पूर्ण व्यवस्था नहीं थी। मार्केट में जहां तहां माल भर कर रखा हुआ था। इससे आग तेजी से फैल गई। दूसरी ओर इस्लामपुर में पुलिस दावा कर रही है कि उसने छात्रों पर फायरिंग नहीं की, पुलिस के दावे को माना जा सकता है, पर अगर पुलिस ने संघर्ष रोकने के लिए गंभीर प्रयास किए होते तो इस तह की अप्रिय घटना सामने नहीं आती। जहां तक दमदम धमाके का सवाल है? पुलिस अगर चौकस रहती तो इस तरह की घटना को टाला जा सकता था।
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