निखिल ने आवेदन की प्रक्रिया गुमटी में बैठकर पूरी की। ऑन लाइन टेस्ट के लिए विभाग की ओर से दी गई तिथि पर उपस्थित हुआ। इसके पहले की आवेदक निखिल टेस्ट देता विभाग के एक कर्मचारी ने पूछा आप किस एजेंट के जरिए लाइसेंस बनाने आए हैं? उसने कहा कि सीधे आए हैं। संबंधित बाबू ने निखिल से कहा कि टेस्ट की प्रक्रिया पूरी करते हैं। निखिल से बाबू ने 10 साल पूछे।
निखिल चार सवालों का जवाब दे सका। उसे टेस्ट में फेल कर दिया गया। दोबारा तैयारी कर आने के लिए कहा। निखिल के पीछे ही एक दूसरा आवेदक खड़ा था, जो एजेंट के जरिए आया था। उस आवेदन की फाइल पर एजेंट का संक्षिप्त नाम लिखा हुआ था।
Read more : यात्री ट्रेनों को बंद करने के लिए रेलवे हर बार ढूंढ लेता है नया बहाना, इस तरह होती है परेशानी यह देखकर बाबू ने उस आवेदक से कुछ नहीं पूछा। सवाल में जब आवेदन उलझने लगा तो बाबू ने खुद सवाल का उत्तर आवेदक को बता दिया। उसे टेस्ट पास करा दिया। बाबू के व्यवहार से हैरान निखिल घर लौट गया। उसने एजेंट के जरिए अपना लाइसेंस बनाया। निखिल जैसे कई लोग हैं, जो बिना एजेंट का सहारा लिए अपने काम से परिवहन कार्यालय पहुंचते हैं। लेकिन विभाग में उनका काम नहीं होता है। क्योंकि फाइलों के साथ टेबल पर चढ़ावा नहीं देते हैं। परिवहन विभाग के कार्यालय में हर माह औसत 800 से एक हजार आवेदन लर्निंग लाइसेंस के लिए आते हैं। 200 से 300 स्थाई लाइसेंस भी जारी किए जाते हैं, पर फाइलों के साथ बिना चढ़ावा दिए काम हो जाए। यह कठिन है।
लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया पारदर्शि नहीं
जिला परिवहन विभाग(District transport office) के कार्यालय से अनियमितताओं को दूर करने के लिए आवेदन की प्रक्रिया को ऑन लाइन किया गया। उम्मीद थी विभाग के कार्यो में पादर्शिता आएगी। कार्यालय ऑन लाइन हो गया, लेकिन विभाग के कुछ कर्मचारियों की नीयत में बदलाव नहीं हुआ।
-विभाग के कार्यों में पादर्शिता है। लोगों को एजेंटों के बजाए सीधे कार्यालय पहुुंचकर काम कराना चाहिए। समस्या आने पर विभाग प्रमुख से शिकायत करनी चाहिए।
गौरव साहू
-जिला परिवहन अधिकारी, कोरबा