बिलासपुर मंडल अंतर्गत ऊर्जाधानी के लोगों के लिए रेलवे लंबी दूरी के सफर का एकमात्र सुगम साधन हैं। रेलवे प्रबंधन ने यात्रियों की सुविधाओं को नजरअंदाज कर दिया है। जनवरी माह से लगातार यात्री टे्रनों को रद्द किया जा रहा है। प्रबंधन ने जनवरी महीने में सूचना जारी किया था। इसमें चांपा यार्ड के जांजगीर चांपा से सारागांव में नॉन इंटरलॉकिंग व आधुनिकीकरण करने के काम का उल्लेख किया गया था। इसके बाद लगातार टे्रनों का प्रभावित होना आम बात हो गई है। वर्तमान में कोरबा से बिलासपुर के मध्य चलने वाली दो जोड़ी मेमू लोकल 31 अगस्त तक के लिए रद्द हैं। यात्री प्रतिदिन स्टेशन पहुंंच रहे हैं और परेशान हो रहे हैं। लेकिन रेलवे प्रबंधन को यात्रियों की समस्या से कोई सरोकार नहीं है।
यात्री सुविधा छीनकर ढुृलाई पर फोकस
रेलवे प्रबंधन ने जनवरी माह से जुलाई माह तक अलग-अलग यार्ड में मरम्मतीकरण के नाम पर यात्री सुविधाओं को बंद कर दिया। जबकि मालगाडिय़़ों का परिचालन युद्धस्तर पर जारी है। अब प्रश्न यह उठता है कि सिर्फ यात्री टे्रनों को ही बंद क्यों किया गया? जानकारी के अनुसार कोरबा जिला देश के विभिन्न प्रदेशों व अन्य जिलों के लिए प्रतिदिन कोयले से भरी लगभग 40 मालगाडिय़ों के रैक रवाना करता है। पिछले साल महज 35 से 38 रैक ही जा रही थी।
इस तरह समझें महीने वार टे्रनों को कैसे किया गया बंद
-7 जनवरी से दो फरवरी तक जांजगीर-चांपा से सारागांव टै्रक के मरम्मतीकरण व आधुनिकीकरण के नाम पर बंद कर दिया।
-22 जनवरी से दो फरवरी तक जांजगीर-चांपा से सारागांव ट्रैक के मरम्मतीकरण व आधुनिकीकरण के नाम पर हदसेव, छत्तीसगढ़ एक्सपे्रस, पैसेंजर व मेमू गाड़ी भी रद्द रही।
-2 फरवरी को चांपा रेल लाईन पर मालगाड़ी उतर गई थी। इसके बाद दो से तीन दिनों के बाद कुछ गाडिय़ों का परिचालन बंद रही।
-10 फरवरी से 31 मार्च तक 50 दिनों के लिए तीन जोड़ी मेमू लोकल को बंद रही।
-एक से 31 अपै्रल तक रद्द मेमू लोकल का लगातार जारी रहा।
-1 मई से 31 जून तक के लिए मेमू लोकल व पैसेंजर सप्ताह में चार दिनों के लिए परिचालन बंद कर दिया।
-जून का महीना पूरा होने के बाद इसकी मियाद फिर से बढ़ा दी गई। 31 जुलाई तक मेमू तीन जोड़ी टे्रने प्रभावित रही।
-अब अगस्त माह में एक जोड़ी पैसेंजर का परिचालन तो शुरू कर दिया है। लेकिन दो जोड़ी मेमू लोकल अब भी सप्ताह में चार दिनों के लिए बंद है।
-शुक्रवार को रेलवे प्रबंधन ने लिंक एक्सपे्रस में सवारी बैठाए बिना ही बिलासपुर तक दौड़ा दिया था। जबकि बिलासपुर से आगे के लिए रवाना किया गया था।