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कोरबा

कोरोना टीकाकरण में हो रही थी ये बड़ी धांधली, स्टिंग से हुआ सनसनीखेज खुलासा

टीके की कालाबाजारी का रैकेट अब भी पकड़ से दूर है। डॉ माखीजा बताने से इंकार कर चुके हैं कि टीके उन तक कैसे पहुंचते थे। प्रशासन के पास कोई सबूत नहीं है कि जिससे वह जांच शुरु कर सके।

कोरबाJul 05, 2021 / 05:29 pm

Karunakant Chaubey

कोरोना टीकाकरण में हो रही थी ये बड़ी धांधली, स्टिंग से हुआ सनसनीखेज खुलासा

कोरोना टीकाकरण में हो रही थी ये बड़ी धांधली, स्टिंग से हुआ सनसनीखेज खुलासा

कोरबा. डॉ अशोक कुमार माखिजा, शिशु रोग विशेषज्ञ (संविदा डीएमएफ) प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र कोरबा द्वारा अपने निजी क्लीनिक में बिना अनुमति शासकीय कोविड-19 का टीका शुल्क लेकर आमजनों को लगाए जाने के कारण तत्काल प्रभाव से उनकी सेवा समाप्त की जाती है।

ये आदेश कलेक्टर ने जारी किया है। पत्रिका के स्टिंग से हुए खुलासे के बाद रविवार को कलेक्टर रानू साहू ने डॉ अशोक माखीजा की छुट्टी कर दी। यहां तक की अगले आदेश तक डॉ माखीजा के निजी क्लीनिक को खोलने पर रोक लगा दी गई है। इन सबके बीच एक और सनसनीखेज खुलासा हुआ। पावर हाउस रोड स्थित डॉ माखीजा का क्लीनिक नर्सिंग एक्ट के तहत पंजीकृत भी नहीं है।

डॉ माखीजा द्वारा निजी क्लीनिक में कोरोना टीके को पैसे लेकर लगाने का खुलासा पत्रिका के स्टिंग में हुआ था। स्टिंग ऑपरेशन की वजह से डॉ माखीजा वैक्सीन लगाने से खुद इंकार नहीं कर सके थे। एक दिन पहले एसडीएम के सामने अपने बयान में डॉक्टर ने बयान दिया था कि वे वैक्सीन पिछले कुछ दिनों से लगा रहे थे, लेकिन पैसे लेकर कोविड टीके लगाने की बात से गोलमोल जवाब दे रहे थे, जांच टीम ने स्टिंग के वीडियो को देखा, जिसमें स्पष्ट तौर पर पैसे लेते हुए डॉ माखीजा दिख रहे थे।

जनता को कम वैक्सीन लगाकर बीएमओ ने बेच दीं 8 हजार डोज

इसी से स्पष्ट हो गया कि डॉ माखीजा पैसे लेकर टीके को अपने क्लीनिक में लगा रहे थे। पर्याप्त सबूत के आधार पर कलेक्टर रानू साहू ने डॉ माखीजा की डीएमएफ से नियुक्ति को समाप्त कर दिया। कलेक्टर के इस कार्रवाई से पूरे स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मच गया है।

12 साल में पांच सीएमएचओ बदले, आखिर अवैध क्लीनिक पर कार्रवाई क्यों नहीं?

बीते 12 साल में पांच सीएमएचओ बदले गए। इस बीच डॉ माखीजा अवैध क्लीनिक बड़े ही आराम से चलाते रहे। शहर के मुख्य मार्ग में संचालित इस क्लीनिक में आखिर किसी सीएमएचओ की नजर क्यों नहीं पड़ी। इससे पहले कई सीएमएचओ आए। डॉ पामभोई, डॉ कुम्भकार, डॉ सिसोदिया और अब सीएमएचओ की जिम्मेदारी डॉ बोडे संभाल रहे हैं। सरकारी डॉक्टर और सीएमएचओ के बीच सांठगांठ का ही नतीजा है कि किसी ने कार्रवाई नहीं की। कलेक्टर डॉ माखीजा के क्लीनिक का लाइसेंस निरस्त करने के निर्देश दिए गए। तब इसका खुलासा हुआ। इसलिए क्लीनिक को आगामी आदेश तक बंद करा दिया गया है।

टीके की कालाबाजारी का रैकेट अब तक पकड़ से दूर

टीके की कालाबाजारी का रैकेट अब भी पकड़ से दूर है। डॉ माखीजा बताने से इंकार कर चुके हैं कि टीके उन तक कैसे पहुंचते थे। प्रशासन के पास कोई सबूत नहीं है कि जिससे वह जांच शुरु कर सके। इसलिए जरुरी है कि टीके की कालाबाजारी के मामले के तहत डॉ माखीजा पर केस दर्ज कर पुलिसिया जांच शुरु हो। साइबर सेल से बीते दो महीने के भीतर जिन टीका प्रभारी या उन अधिकारियों से चर्चा की गई होगी जिनपर टीके की जिम्मेदारी थी। वहां से जांच शुरु की जाए। तब जाकर पूरा रैकेट पकड़ा जाएगा।

सवा दो लाख रुपए थी सैलरी, दो साल में मिला करीब 25 लाख का पैकेज

डॉ माखीजा की हर महीने की सैलरी करीब सवा दो लाख थी। दो साल में करीब २५ लाख रुपए डीएमएफ के डॉ माखीजा को दिए गए, लेकिन मरीजों के प्रति असवेदनशील होने की वजह से लोग परेशान थे। सरकारी अस्पताल में नहीं बैठते थे। पीएचसी के प्रभारी ने कई बार इनकी शिकायत अधिकारियों को कर चुके थे। अब डॉ माखीजा को हटाने के बाद नए एमडी डॉक्टर की पदस्थापना की तैयारी की जा रही है।

पूरे मामले में कलेक्टर ने गंभीरता से लेते हुए त्वरित की कार्रवाई

इस पूरे मामले को कलेक्टर रानू साहू ने पूरे गंभीरता से लिया। पत्रिका में स्टिंग की खबर प्रकाशित होने के बाद उन्होनें एसडीएम को जांच की एक दिन में रिपोर्ट तलब की थी। शनिवार की शाम तक जांच पूरी हो गई थी। रविवार को छूट्टी के दिन कलेक्टर ने डॉ माखीजा के सेवा समाप्ति का आदेश जारी किया। इससे पहले अपने आप को फसता देख डॉ माखीजा जुगाड़तंत्र में जुट गए थे। डॉ माखीजा के बैच के कई साथी आज स्वास्थ्य विभाग में बड़े पदों पर हैं। मामले को दबाने का डॉ माखीजा ने प्रयास भी किया था, लेकिन कलेक्टर की सख्ती के आगे ये काम नहीं आया।

अब आगे क्या?

अब आगे की कार्रवाई पर सबकी नजरें टिकी हुई है। जैसा की अपने बयान में डॉ माखीजा ने बताया था कि बचे हुए कोविड टीके को मंगाते थे। वहीं स्टिंग में इसका खुलासा हुआ कि टीके के लिए तीन घंटे पहले उनको एडवांस बताना पड़ता था। इसलिए अब यह कोशिश की जा रही है कि आखिर इस तीन घंटे की अंतराल में वैक्सीन उन तक पहुंचता कहां से था। अधिकारियों को जानकारी मिली है कि जिला अस्पताल में पदस्थापना के दौरान इनकी ग्रामीण क्षेत्र के डॉक्टर व स्टॉफ के करीब थे।

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