दीपावली में हर वर्ष नियमों की अनदेखी की जाती है। विभाग द्वारा इस पर लगाम कसने किसी तरह की खास कवायद नहीं की जाती है। मानकों से ज्यादा आवाज वाले पटाखे छोड़े जाते हैं, इससे प्रदूषण बढ़ता है। हालांकि मुख्य बाजार स्टेडियम में मानक के अनुरूप ही पटाखों की बिक्री होती है। अन्य स्थानों पर लोग चोरी-छिपे अधिक ध्वनि वाले पटाखे बेचे जाते हैं। पिछले कई वर्षों से यही सिलसिला चला आ रहा है। शहर सहित उपनगरीय क्षेत्रों में लाखों रुपए का पटाखा व्यापार होता है। कोरबा पहले ही प्रदूषण के मामले में संवेदनशील है। पटाखों के कारण भी प्रदूषण अधिक होता है। पर्यावरण सरंक्षण मंडल प्रदूषण मापनेे केवल तीन यंत्र लगाया जा रहा है। पहला पर्यावरण संरक्षण कार्यालय दूसरा जमनीपाली व तीसरा टीपीनगर में। अब तीनों ही जगह पर आम दिनों व दीपावली के प्रदूषण का स्तर देखा जाएगा।
Video Gallery : पेड़ों से लेकर दीवारों तक लहरा रहे पार्टी के झंडे व स्टीकर, देखिए वीडियो… पक्षियों को खतरा
पटाखों से पक्षियों पर भी खतरा मंडरा रहा है। अधिक विषैले धुएं से आसमान में उडऩे वाले पक्षियों को नुकसान पहुंच सकता है। खासकर प्रवासी पक्षियों को इसे खतरा हो सकता है। दीपावली के दौरान लगातार पांच दिन तक रात जमकर पटाखे छोड़े जाते हैं। धुएं व आवाज से इन पक्षियों को खासी परेशानी होती है।
यह है प्रदूषण का मानक
आरएसपीएम (रेस्पीरबेल सस्पेंड पर्टीकुलर मेटर) के अनुसार वायु प्रदूषण १०० माइाक्रोग्राम प्रति एमक्यू होनी चाहिए। इसी तरह ध्वनि प्रदूषण सुबह छ: से रात दस बजे तक ५५ डेसीबल व रात १० से सुबह छ: बजे ४५ डेसीबल होनी चाहिए।