एसईसीएल गेवरा खदान में हेवी ब्लास्टिंग, दीवारों पर पड़ रही दरारें, जान-माल की सुरक्षा को लेकर ग्रामीणों में भय
कोरबा/भिलाईबाजार. एसईसीएल की गेवरा खदान में मिट्टी व कोयला उत्खनन के लिए तीन से चार बार हेवी ब्लास्टिंग किया जाता है। ब्लास्टिंग के झटके से खदान से कुछ ही दूरी पर स्थित ग्राम सराईपाली, भठोरा के घरों को नुकसान पहुंच रहा है। दीवारों में दरारें पड़ रही है, इससे ग्रामीण अपनी जान-माल की सुरक्षा को लेकर काफी चिंतित हैं। ग्रामीणों द्वारा पुनर्वास की मांग की गई है लेकिन प्रबंधन इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है।
एसईसीएल गेवरा परियोजना कोल इंडिया की बड़ी खदानों में शुमार है। गेवरा खदान से बड़ी मात्रा में कोयला उत्खनन किया जाता है। एसईसीएल की कोयला उत्पादन लक्ष्य प्राप्ति में गेवरा खदान का महत्वपूर्ण योगदान है। एसईसीएल द्वारा वर्षों पूर्व ग्राम सराईपाली, भठोरा, भिलाईबाजार सहित आसपास के गांवों की भूमि का अधिग्रहण किया था। भूविस्थापितों को मुआवजा व नौकरी उपलब्ध कराई गई है। लेकिन ग्राम भठोरा के कम भूमि वालों को मुआवजा तो दिया गया लेकिन रोजगार नहीं मिला।
ग्राम भठोरा में लगभग 500 परिवार निवासरत है। इन्हें खदान से दूर अन्य स्थान पर पुनर्वास की सुविधा उपलब्ध नहीं कराए जाने से ग्रामीण ग्राम भठोरा में ही रहने को मजबूर हैं। कई बार प्रबंधन से पुनर्वास की मांग कर चुके हैं। लेकिन प्रबंधन द्वारा इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। ऐसे में रोजाना खदान में होने वाले हेवी ब्लास्टिंग के झटके सहने और भय के माहौल पर अपना जीवन बसर करने को मजबूर हैं। ब्लास्टिंग के कारण गांव में एसईसीएल प्रबंधन व ग्रामीणों द्वारा घरों में लगाये गए बोर में मिट्टी की मोटी परत जमने से खराब हो रहे हैं। इसे सुधारने में ग्रामीणों को मोटी रकम खर्च करनी पड़ रही है। वहीं एसईसीएल द्वारा लगाए गए बोर को सुधारने ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
किया जा रहा खदान का विस्तार एसईसीएल प्रबंधन गेवरा खदान का विस्तार किया जा रहा है। इसके लिए मिट्टी उत्खनन का कार्य कराया जा रहा है। लॉकडाउन में जहां लोग घरों में रहकर कोरोना वायरस बचने और शासन के आदेशों का पालन कर रहे हैं, वहीं एसईसीएल प्रबंधन खदान विस्तार की प्रक्रिया में जुटा हुआ है। ग्रामीणों ने काम बंद कराया था।
पेयजल की समस्या खदान के करीब बसे होने के कारण ग्राम भठोरा का जल स्तर काफी नीचे चला गया है। बोर खराब होने से लोगों को पानी की समस्या हो रही है। वहीं घरों में खोदे गए कुएं भी सूख गए हैं। तालाब भी सूखने के कगार पर है, इससे ग्रामीणों को निस्तारी की भी समस्या हो रही है।
निकल जाते बाहर प्रतिदिन दोपहर दो से तीन बजे के बीच तीन-चार बार खदान में ब्लास्टिंग की प्रक्रिया अपनाई जाती है। ब्लास्टिंग के कंपन से घरों की छतें हिल जाती है। दीवारों पर दरारें पड़ गई है। ब्लास्टिंग के कंपन को देखते हुए घरों से बाहर निकल जाते हैं।
प्रदूषण की समस्या से हैं परेशान ब्लास्टिंग के दौरान खदान से उडऩे वाली मिट्टी व कोयले के कण गांव तक पहुंच रहे हैं। इससे जहां पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है वहीं ग्रामीणों के स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ रहा है। लोग खांसी, दमा व श्वांस संबंधी बीमारी से ग्रसित हो रहे हैं।
-दोपहर में होने वाले हेवी ब्लास्टिंग के कंपन से डर बना रहता है। खदान मेरे घर से महज लगभग 40से 50 मीटर की दूरी पर है। ब्लास्टिंग से खदान का पत्थर हमारे घर तक न पहुंच जाए या फिर दीवार न गिर जाए, इसका डर बना रहता है। इसलिए इस दौरान हम घर से बाहर निकल आते हैं। देवप्रसाद राठौर, ग्रामीण
-खदान नजदीक होने के कारण क्षेत्र का जल स्तर काफी नीचे चला गया है। मेरे घर में निस्तारी के लिये कुआं के पानी का उपयोग किया जाता था जो एक माह से सूख चुका है। इससे हमें निस्तारी की समस्या से जूझना पड़ रहा है। प्रबंधन से ग्रामीणों द्वारा पुनर्वास की मांग की जा चुकी है। पंचराम राठौर, ग्रामीण
-मेरा घर खपरैल का है। हैवी ब्लास्टिंग से घर के खप्पर गिर रहे हैं इससे हमेशा खतरा बना रहता है। दीवार भी गिर रहा है जिसे लकड़ का सहारा दिया गया है। ब्लास्टिंग के कारण दुर्घटना का शिकार होने का खतरा बना रहता है। एसईसीएल समस्या हल करने ध्यान नहीं दे रहा। इतवार सिंह कंवर, ग्रामीण
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