पूजा अर्चना की जाती है। लोगों का कहना है त्रेतायुग में श्रीराम भाई लक्ष्मण और माता सीता के साथ वनवास काल के दौरान इसी मार्ग से गुजरे थे और यहां विश्राम के लिए रुके थे। जहां पर लक्ष्मण जी द्वारा कन्हैया चिड़िया को मारने के दौरान तीर एक पत्थर में लगने से पत्थर के दो टुकड़े हो गये थे, जो आज भी इस पत्थर के टुकड़े नदी में है।
तीर पत्थर को लगने से पत्थर के दो टुकड़े हो गए थे। एक टुकड़ा पत्थर ग्राम धनराश के तालाब में गिरा और पत्थर का दूसरा भाग अरिहन नदी के बीच गिरा, जो आज भी नदी के बीच ज्यो का त्यो रखा हुआ है। इसमें तीर का निशान स्पष्ट दिखाई दे रहा है। धनुष चलाने के दौरान लक्ष्मण जी का पांव पड़ गया। इस कारण इसके पदचिन्ह आज भी हैं। इस स्थान को लक्ष्मण पांव से जाना जाता है। इसकी प्राचीन काल से पूजा करते आ रहे है।
पर्यटन विभाग नहीं दे रहे ध्यान पर्यटन विभाग की ओर से पर्यटन स्थल और पद चिन्ह को सुरक्षा और सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं है। इस कारण धीरे-धीरे कई प्राचीन धरोहर लुप्त होने के कगार पर है।
बनाया गया श्रीराम-सीता मंदिर ग्रामीणों के सहयोग से लक्ष्मण पांव स्थान पर भगवान श्रीराम-सीता और लक्ष्मण का मनोरम मंदिर बनाकर इसे सुरक्षित किया गया है। यहां पर ग्रामीण सुबह और शाम पूजा अर्चना करते है। रामनवमी में विशेष अनुष्ठान के साथ ही रामायण पाठ, भजन र्कितन का भी आयोजन किया जाता है। सोमवार को अयोध्या में भगवान श्रीराम के आगमन व प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर ग्राम जटांगपुर लक्ष्मण मंदिर में विशेष अनुष्ठान किए जाएंगे।
प्राचीन धरोहर को संजोए रखने की जरूरत
इसके साथ यह स्थान पिकनिक स्पॉट के लिए भी प्रसिद्ध है। जटांगपुर के निरंजन सिंह का कहना है कि पहले यह स्थान घनघोरा जंगल से घिरा हुआ था। जहां जंगली जानवर बाघ,भालू, चिता घूमते रहते थे। इस ऐतिहासिक स्थल लक्ष्मण पांव के चिन्ह को संजोए व सुरक्षित रखने की जरूरत है।