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कोरबा

पौधे लगाने पर ध्यान, सहेजने पर नहीं, बीते कई साल में लगाए पौधों का नामोनिशान तक नहीं

शहर का ग्रीन बेल्ट(Green belt) का दायरा बढ़ेगा। प्रदूषण(Pollution) कम होगा। पत्रिका ने उन जगहों पर पहुंची तो आधे से ज्यादा पौधे मिले ही नहीं। कई जगह अफसरों व माननीयों ने भी पौधरोपण(Plantation) किया था।

कोरबाJul 01, 2019 / 11:38 am

Vasudev Yadav

पिछले छह साल में लगाए गए थे 20 लाख से अधिक पौधे, पर अधिकांश जगह नहीं है पौधे

पौधे लगाने पर ध्यान, सहेजने पर नहीं, बीते कई साल में लगाए पौधों का नामोनिशान तक नहीं

कोरबा. हर साल हजारों पौधे लगाए जा रहे हैं, इस बार भी इसकी तैयारी है। लेकिन पौधरोपण(Plantation) करने के बाद उन पौधों को सहेजने(Save the plants) के लिए गंभीरता नहीं दिखाई जाती। यही वजह है लगाए जा रहे पौधों में से 80 फीसदी पौधों(plants) का नामोनिशान तक नहीं मिलता। पिछले छह साल में पौधरोपण(Plantation) की बात करें तो लगभग 20 लाख से अधिक पौधे शहर के अलग-अलग जगहों पर लगाए गए थे। दावा किया गया था कि इससे शहर का ग्रीन बेल्ट(Green belt) का दायरा बढ़ेगा। प्रदूषण(Pollution) कम होगा। पत्रिका ने उन जगहों पर पहुंची तो आधे से ज्यादा पौधे मिले ही नहीं। कई जगह अफसरों व माननीयों ने भी पौधरोपण(Plantation) किया था। वहां पर सिर्फ उनके नाम की शिलापट्टी लगी हुई है। लेकिन पौधे बढऩे से पहले ही सूख गए या तो मवेशियों के भेंट चढ़ गए।

स्मृति उद्यान, छह साल पहले लगाए थे 5 सौ पौधे, मौके पर सिर्फ तीन
घंटाघर मार्ग स्थित स्मृति उद्यान में छह साल पहले ५ सौ पौधे लगाए गए थे। तत्कालिक आयुक्त, महापौर समेत जिले के तमाम आला अधिकारी मौके पर उपस्थित थे। सभी ने अपने नाम के पौधे लगाए थे। बकायदा सभी पौधों के आगे उनके नाम की पट्टी तक लगाई गई थी। दरअसल इस गार्डन के सामने पार्किंग डेवलेप करने के लिए निगम ने सैकड़ों पेड़ों की बलि चढ़ाई थी। इसी की भरपाई करने के लिए निगम ने पौधरोपण किया था। दावा किया गया था कि सुरक्षित जगह होने की वजह से पौधे सही सलामत रहेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आज इन ५ सौ पौधों मेें से सिर्फ ३ पौधे ही मौके पर है।

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कलेक्ट्रोरेट परिसर, चार साल पहले 1 हजार पौधे, मौके पर एक भी नहीं
कलेक्ट्रोरेट परिसर के पीछे पार्किंग स्थल पर एक हजार पौधे लगाए गए थे। इस जगह पर पहले से ही पेड़ लगे हुए थे। पूरे क्षेत्र को कंटीले तार से घेरा गया था। लेकिन देखते ही देखते ये तार तोडक़र अधिकारियों की चार पहिया खड़ी होने लगी। आज के समय में यह जगह अघोषित पार्किंग के लिए काम आता है। एक हजार पौधों में एक भी मौके पर नहीं मिलेंगे। वहीं गाडिय़ों के खड़े होने से छोटे पौधों को नुकसान भी पहुंच रहा है। प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा भी पौधरोपण करने के बाद उसे गंभीरता से नहीं ली जा रही है।

जिला जेल के पीछे, दो साल पहले लगाए गए थे 6 सौ पौधे, अब गायब
हरिहर छग योजना के तहत वन विभाग ने जिला जेल के पीछे छह सौ पौधे लगाए गए थे। उस दौरान विभाग को जमीन नहीं मिलने की वजह से आनन-फानन में यह जगह दी गई थी। दावा किया गया था जेल के आसपास ग्रीन बेल्ट विकसित किया जाएगा। आज इनमें से एक भी पौधे मौके पर नहीं है। दरअसल पौधे लगाने के बाद सुरक्षा व्यवस्था नहीं की गई थी। इस वजह से मवेशी पौधे चट कर गए। इधर वन विभाग इस साल भी कह रहा है कि पौधे लगाने के लिए जगह नहीं है। रिकार्ड में इस जगह पर पौधे लगे हुए हैं।

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पौधों को सहेजने के लिए वन विकास निगम का फार्मूला अपनाना जरूरी
पौधों को सहेजने के लिए वन विकास निगम का फार्मूला अपनाना जरूरी है। वन विकास निगम द्वारा पौधे लगाने के साथ-साथ उसकी सुरक्षा का भी उपाय करता था। नियमित पानी उपलब्ध कराता था। लेकिन दूसरे विभाग सिर्फ पौधे लगाकर खानापूर्ति कर लेते हैं। उन पौधों को बाद में तस्दीक भी नहीं की जाती है।

एक पौधा तैयार करने में एक साल की कड़ी मेहनत लगती है
वन विभाग के नर्सरी में एक पौधा तैयार करने में कम से कम एक साल की कड़ी मेहनत लगती है। पीपल, नीम जैसे पौधों को एक फीट से अधिक करने के बाद ही पौधरोपण के लिए दिया जाता है। वहीं आम व जामुन जैसे पौधों को छह से आठ माह का समय लगता है। पौधा कोई भी हो औसतन १० रूपए तैयार करने में विभाग का खर्च आता है। इतनी मेहनत और राशि खर्च करने के बाद पौधे लगाए जाते हैं लेकिन बाद में ध्यान नहीं देने से सूख जाते हैं।

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