कोरबा

सुअरलोट की शैलचित्रों में है सीताहरण की कहानी, कोरबा में भी मर्यादा पुरुषोत्तम राम के वनवास से जुड़ी कथाएं…

वनवास के दौरान सीतामणी में भी श्रीराम ने पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ कुछ दिन तक ठहरे थे। इसके उपरांत पंचवटी दमउदहरा के लिए प्रस्थान किया था।

कोरबाNov 11, 2019 / 01:38 pm

Vasudev Yadav

सुअरलोट की शैलचित्रों में है सीताहरण की कहानी, कोरबा में भी मर्यादा पुरुषोत्तम राम के वनवास से जुड़ी कथाएं…

कोरबा. सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद आयोध्या में राम मंदिर का रास्ता साफ हो गया है। कोरबा में भी मर्यादा पुरुषोत्तम राम के वनवास से जुड़ी कई कथाएं हैं। कहा जाता है कि वनवास के दौरान राम, लक्ष्मण और सीता ने कोरबा के सीतामणी में कुछ समय गुजारा था। यहां से तीनों दमउदहरा की ओर चले गए थे।
विकासखंड करतला के ग्राम पंचायत खुंटाकुड़ा के धंवइभाठा मोहल्ले से लगे सुअरलोट की पहाडिय़ों भी राम के वनवास से जुड़ी कई शैलचित्र मिले है। ये शैलचित्र लगभग 25 फीट लंबी है, जिस क्षेत्र में यह शैलचित्र हैं, उसे ग्रामीण दुल्हा दुल्ही पहाड़ी कहते हैं। यहां से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर सीता चौकी है। इसमें दो चित्र ज्यामितीय है। दो रेखाएं एक दूसरे को काटती है। पुरातत्व विभाग अधिकारी भी यहां का दौरा कर चुके हैं। भारतीय इतिहासकारों को विमान की अवधारणा चित्र भी यहां से मिले हैं। इतिहासकार रायबहादुर ने सीताहरण ऋषभ तीर्थ क्षेत्र से होना मानते हैं।

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यह क्षेत्र सुअरलोट की पहाडिय़ों में है। इस पहाड़ी में एक और महत्वपूर्ण स्थान पंचवटी भी है। इसे काल वराहकल्प राम आश्रम कहते हैं। यहां से लगभग पांच मील की दूरी पर एक और पहाड़ी है, इसे गिद्धराज पहाड़ कहते हैं। इस पहाड़ी में जटायू का आश्रम होना माना जाता है। इसके उत्तर पूर्व में उमा शिव का आश्रम होने की बात कही जाती है। इसके पास ही कुम्भज ऋषि का आश्रम था। इसे कुम्हार पहाड़ी कहते हैं। क्षेत्र में सीता आश्रम है। रावण खोल नाम का जगह भी है। कहा जाता है कि रावण ने मारीच के साथ षड्यंत्र रचा था। मारीच को हिरण बनने के लिए कहा था ताकि सीताहरण कर सके। मारीच का स्थान रैन खोल कहलाता है। पंचवटी से लगभग चार मील की दूरी पर पंच झरोखा है, इसे अब रामझोझा के नाम से जाना जाता है। यहां की एक शीला पर चिन्ह मिले हैं। इसे रामपद चिन्ह कहा जाता है। श्रीराम के वनवास से जुड़े अनेक स्थल मौजूद हैं। मान्यता है कि यहां से सीताहरण के बाद भगवान श्रीराम खरौद होते हुए शिवरीनारायण गए थे। वहां सबरी से मुलाकात हुई थी। सबरी ने भगवान को जूठे बेर खिलाई थी। जिले की धरोहरों पर नजर रखने वाले हरि सिंह क्षत्री भी क्षेत्र का भ्रमण कर चुके हैं। उन्होंने भी माना है कि इस क्षेत्र का इतिहास सीताहरण से जुड़ा हुआ है। इससे संबंधित कुछ दस्तावेज भी जिला प्रशासन को सौंपा है।
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माना जाता है कि वनवास के दौरान सीतामणी में भी श्रीराम ने पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ कुछ दिन तक ठहरे थे। इसके उपरांत पंचवटी दमउदहरा के लिए प्रस्थान किया था। वर्तमान में इसका प्रमाण आत्रि ऋषि, भगवान राम, लक्ष्मण की पाषण प्रतिमा सीतामणी रामगुफा मंदिर में विराजमान है। माता अनुसुईया की निवास गृह के दरवाजे पर शिलालेख है। यहां मां सीता का पदचिन्ह है। मान्यता है कि इस दौरान माता अनुसुईया ने सीता को नारी धर्म का उपदेश दिया था। इसलिए इस जगह को सीतमाढ़ी के नाम से जाना जाने लगा। यह शिलालेख कलयुग में रामवतार केे पदगम्य होने का प्रमाण दे रहा है। यहां कुआ से प्रकट होकर पानी देने वाली प्रतिमा मिली थी। इसे जलेश्वर नाथ के रूप में पूजा की जाती है। पुजारी मातादिन बाबा ने बताया कि यहां देवनागरी में लिखी हुई शिलालेख मिले हैं।

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