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कोटा

अजब-गजब: परवन के टापू पर खेती, खतरों से खेलते नदी में ऐसे खींच ले जाते हैं ट्रैक्टर

न उनका कोई स्वयं सहायता समूह है और न ही कोई ग्राम सहकारी समिति। उन्होंने हालात के चलते खुद अपनी राह तय की, चुनौती से निपटने का हल और वक्त भी उन्होंने खुद तय किया।

कोटाJan 16, 2019 / 01:47 am

​Zuber Khan

Ajab-Gajab

अजब-गजब: परवन के टापू पर खेती, खतरों से खेलते नदी में ऐसे खींच ले जाते हैं ट्रैक्टर

मोईकलां. न उनका कोई स्वयं सहायता समूह है और न ही कोई ग्राम सहकारी समिति। उन्होंने हालात के चलते खुद अपनी राह तय की, चुनौती से निपटने का हल और वक्त भी उन्होंने खुद तय किया। तीन दशक से सरकार उनकी राह आसान करने में ‘सेतुÓ नहीं बन रही, लेकिन वे हैं कि जान का जोखिम उठाकर भी अपनी मां को सरसब्ज करने पहुंचते हैं। हम बात कर रहे हैं गांव बूढऩी के उन 90 धरतीपुत्रों की जिनके जब्बे को परवन नदी भी सलाम करती है।
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Pervan River
IMAGE CREDIT: patrika
बूढनी गांव परवन नदी के पास बसा है। बपावर थाने से कुछ किमी की दूरी पर स्थित इस गांव के किसानों की कहानी निराली है। यहां के करीब 90 किसानों की लगभग 480 बीघा जमीन परवन नदी के बीच टापू पर स्थित है। नदी में पानी का बहाव व जल स्तर कम होने के बाद दिसम्बर के अंतिम या जनवरी के प्रथम सप्ताह में किसान छोटे टै्रक्टर को दो नावों की सहायता से नदी का करीब 100 मीटर का पाट पार कर टापू पर ले जाते हैं। इसके बाद थे्रसर की सहायता से सोयाबीन की फसल को तैयार किया जाता है। एक बार टै्रक्टर नदी पार कर टापू पर पहुंच गया तो तीन-चार माह खेती का सारा काम निपटने के बाद ही वापस लाया जाता है। गांव के किसान नदी पर छोटी पुलिया बनाने की मांग पिछले तीन दशक से कर रहे हैं। पुकार कोई नहीं सुन रहा।
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Pervan River
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यूं आ गए खेत नदी के बीच

बारां-झालावाड़ मेगा हाइवे पर बपावर खुर्द गांव के पास परवन नदी एक से डेढ़ किमी नीचे की तरफ चलने के बाद दो भागों में विभाजित हो जाती है। उमरदा गांव के पास पहुंचकर नदी फिर से एक हो जाती है। इस बीच करीब 480 बीघा जमीन का बड़ा हिस्सा है जो 90 किसानों की खातेदारी जमीन है।
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दो दर्जन युवाओं की जिम्म्ेदारी-

खेती के लिए नावों में ट्रैक्टर ले जाने की जिम्मेदारी गांव के दो दर्जन युवाओं पर है। किसानों का कहना है कि बड़े टै्रक्टर को तो नाव में ले जाना मुश्किल है, ऐसे में सभी ने मिलकर 6 साल पहले छोटा टै्रक्टर खरीद लिया। कम पानी और कम बहाव में यह नावों की सहायता से दूसरे छोर पर ले जाया जा सकता है। इससे पहले बैलों और हल को नदी पार ले जाकर खेती की जाती थी।
होती है मुनादी

टै्रक्टर को नदी पार कराने से पूर्व शाम को ही गांव में मुनादी कराई जाती है। इसके बाद कई किसान नदी पर एकत्र होते हैं। एक बार में टै्रक्टर व उसके बाद खाद-बीज भी नावों की सहायता से किसान दूसरे छोर पर ले जाते हैं।
जनवरी में बिक पाती है सोयाबीन

दिसम्बर के अंतिम सप्ताह या जनवरी माह के प्रथम सप्ताह में किसान सोयाबीन को तैयार करते हैं। इसके बाद सोयाबीन मंडी पहुंच पाती है।

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