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कोटा

OMG: स्टेपल पिन खा गया मासूम, एंडोस्कोपी से बाहर निकाले पिन

एक बच्चे ने खेल—खेल में बड़ी मु‍सीबत मोल ले ली, बारां निवासी बृजराज का पुत्र दक्ष स्टेपल पिन खा गया। जिसे एंडोस्कोपी से बाहर निकाला गया।

कोटाOct 18, 2017 / 11:26 am

ritu shrivastav

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बच्चा खा गया स्टेपल पिन

बारां निवासी एक साल का बच्चा घर पर खेल-खेल में स्टेपलर की पिन खा गया। तबीयत बिगडऩे पर परिजन उसे दादाबाड़ी स्थित गेस्ट्रो केयर सेंटर लाए। यहां एण्डोस्कोपी पद्धति से दस मिनट में पिन बाहर निकाले गए। बच्चे की हालत अभी ठीक है।
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पेट में दिखाई दी पिन

बारां निवासी बृजराज वैष्णव ने बताया कि 15 अक्टूबर को सुबह बड़े पुत्र के स्कूल के बैग से स्टेपलर पिन सेट गिर गया था। उसी समय छोटा पुत्र दक्ष (1) ने खेलते-खेलते उसे उठाकर मुंह में खा लिया। अचानक पता चलने पर उसे बारां जिला अस्पताल लेकर गए। वहां चिकित्सक को दिखाया, लेकिन पिन नहीं निकाला। तब 16 अक्टूबर को उसे लेकर कोटा गेस्टो केयर सेंटर पहुंचे। यहां जांच में उसके पेट में स्टेपलर पिन दिखाई दिए।
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हली बार आया ऐसा केस

इधर, सेन्टर के निदेशक डॉ. एडी खिलजी ने बताया कि जांच में पिन बच्चे के पेट में दो भागों में बंट गए थे। इससे पिन पेट में फैल गई थी। पहले बच्चे को बेहोश किया और स्वयं व डॉ. कपिल गुप्ता ने मिलकर एण्डोस्कोपी पद्धति से स्टेपलर पिन निकाले। उन्होंने बताया कि आमतौर पर बच्चे सिक्के, कील, घड़ी व बैट्री के छोटे सेल निगलने के केस आते हैं, लेकिन एेसा केस पहली बार आया है। उन्होंने बताया कि बच्चे के पेट में पिन फंसे रहने से आंतों में छेद होने का खतरा बना रहता। खाने की नली में फंस जाने पर नली में छेद हो सकता है। आंतें भी प्रभावित हो सकती हैं। इससे मृत्यु की भी संभावना बन सकती है।
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रक्तमित्र से बची जान

शहर में विधायक संदीप शर्मा की गठित रक्तमित्र टीम की बदौलत सोमवार को एक डेंगू पीडि़त युवक की जान बच गई। डेंगू पीडि़त कुलजीत सिंह तलवंडी स्थित एक निजी अस्पताल में भर्ती था। अचानक प्लेटलेट्स कम होकर केवल 7000 हजार रह गई। चिकित्सक ने तुरन्त प्लेटलेट्स इंतजाम करने के लिए कहा। मरीज के परिजन रक्तमित्र टीम के सम्पर्क में आए और टीम के सदस्य प्रकाश अग्रवाल ने एमबीएस ब्लड बैंक जाकर एसडीपी डोनेट की। जिससे मरीज को राहत मिली।
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प्रशासन की लापरवाही से हो रही मौतें

पूर्व मंत्री शांति धारीवाल ने एक बयान जारी कर कहा कि शहर में में महामारी बने डेंगू, स्वाइन फ्लू व अन्य बीमारियां के चलते हो रही मौतों का जिम्मेदार जिला प्रशासन है। उन्होंने कहा कि प्रशासन व जनप्रतिनिधियों की लापरवाही से कई घरों के चिराग बुझ गए। प्रशासन की लापरवाही ये है कि जब स्वास्थ्य विभाग को इस बात की जानकारी है कि जुलाई से नवम्बर तक मौसमी बीमारियों का प्रकोप रहता है तो फिर कार्ययोजना बनाकर फोगिंग व रोकथाम के इंतजाम क्यों नहीं किए जाते, क्यों शहरी और ग्रामीण क्षेत्र की जनता को मौत के मुंह में धकेला गया।

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