कोरोना ने बदली गांवों की तस्वीर, सूने घरों में लौटी रौनक, आबाद हुए आंगन, पढि़ए, लॉकडाउन में कैसे बदली जिंदगी…
उजड़ गए थे गांवपुरीलाल ने पुराने समय की यादों को ताजा करते हुए कहा कि उनके बुजुर्ग बताते थे कि सन 1918 में अकाल से पहले लाल बुखार महामारी आई थी। तब लोग बैठे रह गए थे। राजस्थान के रामगंजमंडी तहसील के रीछडिय़ा के आस-पास नया गांव, छतरपुरा, देवीपुर, जोधपुर बसे थे। लाल बुखार में इन गांवों के लोग या तो काल का गाल बन गए या पलायन कर गए। ऐसे में कई गांव उजाड़ हो गए। लाल बुखार में मरने वालों का अंतिम संस्कार तक नहीं हो पाया था। बुजुर्गाे की बातों को युवा ध्यान से सुनते तो बीच में चर्चा कोरोना से विदेशों में मरने वाले लोगों व संक्रमित लोगों तक का जिक्र आ जाता।
महंगाई का जिक्र
महामारी की इन बातों के साथ किसान दुकानें बंद होने से गांवों में शक्कर तेल के भाव बढऩे का जिक्र करते हुए बीमारी से उनके गांव महफूज रहने पर संतोष व्यक्त करने से नहीं चूकते। किसान रबी फसल के बाद अब खरीफ फसल के लिए खेतों को तैयार करने की जुगत में लगे हुए हैं।