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कोटा

Special Story : अनूठी परम्परा : यहां पैरों तले रौंदा जाता है रावण

कोटा. जेठी समाज की रावण को मारने की परम्परा आज भी वही है। अखाड़े की माटी से रावण बनाकर समाज के लोग रावण के अहम को पैरों तले रौंदते हैं। इसे रोंदने के बाद खुशियां मनाते हैं और एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं।

कोटाOct 06, 2019 / 10:59 pm

Deepak Sharma

 Kota has unique tradition of killing Ravana

Kota has unique tradition of killing Ravana

कोटा. वक्त बदलता है और उसके साथ रीति रिवाज और परम्पराएं भी आहिस्ता-आहिस्ता नया रूप लेने लगती है, लेकिन जेठी समाज की रावण को मारने की परम्परा आज भी वही है। अखाड़े की माटी से रावण बनाकर समाज के लोग रावण के अहम को पैरों तले रौंदते हैं। इसे रोंदने के बाद खुशियां मनाते हैं और एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं।
शहर में नांता, किशोरपुरा क्षेत्र स्थित जेठी समाज के अखाड़ों पर यह परम्परा वर्षों से निभाई जा रही है। समाज के ईश्वर लाल जेठी के अनुसार रावण को अखाड़े की माटी से तैयार किया जाता है। इस पर मिट्टी से ही रावण का चेहरा उकेरा जाता है। नवरात्र के प्रारंभ होने से एक दिन पूर्व अखाड़े की मिट्टी का ढेर लगाकर इसे तैयार करते हैं। इस पर ज्वारे उगाए जाते हैं। परम्परा कब से है यह नहीं मालूम पर लोग बताते हैं कि समाज के एक पहलवान ने बलदाऊ को भी हराया था।
नवरात्र में होते हैं आयोजन
किशोरपुरा व नांता स्थित अखाड़े पर नवरात्र में विशेष आयोजन होते हैं। अखाड़ा परिसर में रोज गरबा चलता है, लेकिन इससे पहले देवी की महिमा के 11 भजन विशेष रूप में गाए जाते हैं। इसके बाद देर रात तक गरबा खेला जाता है। kota mela dussehra 2019 दशहरे के दिन सुबह रावण से कुश्ती लड़कर उसे पैरों तले रौंदा जाता है। ज्वारों को बुजुर्ग एक-दूसरे को वितरित करते हैं। लोग बड़े-बूढ़ों का आशीर्वाद लेते हैं।
गुजरात से आए थे जेठी परिवार
80 वर्षीय शिव कुमार जेठी बताते हैं कि जेठी गुजराती ब्राह्मण हैं, जो गुजरात के विभिन्न क्षेत्रों से आए। समाज की कुल देवी लिम्बजा माता है। महाराव उम्मेद सिंह समाज के लोगों को लेकर आए। उन्होंने ही किशोरपुरा व नांता में अखाड़ा बनवाया। समाज के लोग पहले नौकरियां नहीं करते थे, सिर्फ पहलवानी करते थे, परिवार का सारा खर्चा दरबार ही उठाया करते थे। कोटा में वतर्मान में नांता व किशोरपुरा क्षेत्र में जेठी समाज के करीब 150 परिवार हैं। पूर्व में बृजनाथजी की सवारी के साथ सुरक्षा के लिए जेठी समाज के लोग चलते थे।
यह भी है उल्लेख
बुजुर्ग शिव कुमार बताते हैं कि लिम्बजा माता नीम के पेड़ से प्रकट हुई थी। माता का एक हाथ है। एक बार अकबर बादशाह ने गुजरात के देलमाल गांव में लोगों की जमीने छीनने लगा दिया व लंगर घुमा दिया और गांव के लोगों को कुश्ती की चुनौती दे दी। गांव के लक्खा भाई जेठी ने साहस किया और चुनौती को स्वीकार कर लिया। इस पर अकबर बादशाह ने कहा कि पहले उनके हाथी का सामना करना होगा। लक्खा भाई ने देवी लिम्बजा से प्रार्थना की, इस पर देवी ने कहा कि सामने गज आए तो सिर पर जोर से मुष्ठिका का प्रहार करना। पीछे नहीं देखना, ऐसा ही हुआ। कुश्ती के समय बादशाह द्वारा भेजा गया हाथी आया। लक्खा जेठी ने देवी के अनुसार सब कुछ किया, लेकिन देवी के दर्शन को आतुर होकर पीछे देख लिया। इस समय माता का नीम के पेड़ से एक हाथ बाहर था, लक्खा के देखते ही माता का हाथ निकल गया। कहा जाता है तब ही से लिम्बजा माता एक हाथ ही है। लक्खा जेठी से प्रसन्न होकर समाज को देवमाल गांव में जागिर दे दी।
नवमी पर हवन
ईश्वर लाल बताते हैं नवमी पर हवन किया जाता है। दशमी के दिन हनुमानजी का पूजन कर रोठ का भोग लगाते हैं, फिर लिम्बजा माता की आरती कर रावण वध किया जाता है। समाज के पहलवान रावण के अहम को पैरों तले रोंदेते हैं, फिर खुशियां मनाने का सिलसिला शुरू हो जाता है। इस वर्ष दोपहर 12 बजे आरती के बाद रावण का वध किया जाएगा।
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