खेतों में फसलें बूंद-बूंद पानी को तरस रही हैं। हताश किसान चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे। धान और सोयाबीन की फसलों के खेत के खेत बर्बाद हो गए हैं। किसानों ने फसलों को बचाने के लिए नलकूपों से पानी देना शुरू कर दिया है।
कृषि विभाग के अह्यधिकारियों का कहना है कि मानसून की देरी के कारण हाड़ौती में खरीफ की बुवाई पर प्रतिकूल असर पड़ा है, जो फसलों बोई जा चुकी हैं, उनको बचाने का भी संकट हो गया है। बारिश नहीं आने और गर्मी के कारण फसलें सूखने लगी हैं। सबसे ज्याद संकट धान और सोयाबीन की फसल पर आया है। खेत के खेत तबाह हो गए।
किसान बेबस नजर आ रहे हैं। हाड़ौती में इस साल धान की बुवाई का लक्ष्य 77 हजार हैक्टेयर रखा गया था, करीब साठ फीसदी धान रोपा जा चुका है, लेकिन अब पानी की सख्त जरूरत है। सोयाबीन की बुवाई का छह लाख 68 हजार हैक्टेयर का लक्ष्य रखा गया था। हाड़ौती में 31 जुलाई तक सोयाबीन की बुवाई होती है। बारिश नहीं होने से बुवाई भी प्रभावित हो रही है।
यहां धान में दिखाई रुचि
सांगोद क्षेत्र में इस साल धान की फसल में किसानों ने ज्यादा रुचि दिखाई है। जुलाई माह की शुरुआत में छह दिन तक हुई लगातार बारिश के बाद किसानों ने धान की जमकर बुवाई की, लेकिन अब हालत यह हैं कि बिना बारिश धान की फसल खेतों में ही सूखने लगी है। धान के खेतों में दूर-दूर तक बारिश की बेरुखी के निशान दिख रहे हैं।
यहां भी कम नहीं परेशानी
जिन किसानों के पास सिंचाई के साधन हैं वो सिंचाई करके फसलों को बचाने की जुगत में लगे हुए हैं, लेकिन परेशान यह भी कम नहीं है। धान की फसल पानी में डूबी रहती है। किसान रात को सिंचाई कर खेतों को पानी से भर रहे हैं, लेकिन दिन में तेज धूप एवं गर्मी से सारा पानी सूख रहा है। ऐसे में किसानों को रोज नलकूपों से सिंचाई करनी पड़ रही है। इससे बिजली के बिल की अतिरिक्त मार किसानों पर पड़ रही है। जिन किसानों के पास सिंचाई के साधन नहीं हैं और जो अभी तक बुवाई नहीं करे सके, उन्होंने अब धान की रोपाई का मन बदलकर अन्य फसलों की बुवाई की तैयारी कर ली है।
बिजली की मांग उठी ग्रामीण क्षेत्रों में अब बिजली की मांग बढ़ गई है। अचानक बढ़ी मांग के कारण विद्युत तंत्र भी गड़बड़ा गया है। किसान आठ घंटे लगातार थ्री फेज बिजली की मांग कर रहे हैं। थ्री फेज बिजली की मांग को लेकर आंदोलनों का दौर शुरू हो गया है।
इन्द्रदेव को मनाने में जुटे
गांवों में बारिश के लिए टोने-टोटकों का दौर शुरू हो गया है। किसी गांव में घासभैरू की सवारी निकाली जा रही है तो किसी गांव व कस्बे में लोग खेतों में खाना पकाकर खा रहे हैं। रामयण पाठ चल रहे हैं।