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कोटा

राजनीति के इन दिग्गजों ने अपनाया ‘जिधर दम उधर हम’ का सिद्धांत, पाला बदलकर विरोधियों के लिए ही मांग रहे हैं वोट

Election 2019 : राजनीति के दिग्गज लेकिन दलबदल के उस्ताद
 

कोटाApr 11, 2019 / 10:16 pm

Rajesh Tripathi

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कभी थे राजनीति के नार्थ और साउथ पोल , आज उन्ही के लिए मांग रहें है ये नेता


मौजूदा दौर की राजनीति में विचारधारा शब्द का महत्व तेजी से घटा है । आज राजनेता अपने स्वार्थ या निजी लड़ाई के लिए विचारधारा से समझौता करने में जरा सी भी देर नहीं लगाते । प्रदेश में भी इसके कई उदाहरण है, कल तक जो एक – दूसरे को फूटी आँख देखना पसंद नहीं करते थे वे आज उन्ही के लिए वोट मांगते नज़र आ रहे है ।

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इज्यराज सिंह
हाड़ौती में Congress के बड़े नेता रहे पूर्व सांसद और राजघराने के सदस्य इज्यराज सिंह ने विधानसभा चुनावों के ठीक पहले कांग्रेस छोड़ BJP का दामन थाम लिया था। दरअसल पार्टी द्वारा विधानसभा चुनावों में अनदेखी करने के बाद वे पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ने उन्हें भाजपा में शामिल करा लिया । इसके बाद कोटा जिले की लाडपुरा सीट से उनकी पत्नी को टिकट मिला और वे चुनाव भी जीत गई। अब आलम यह है कि 2014 में भाजपा के जिस उम्मीदवार से इज्यराज सिंह हारे थे अब उन्हीं के लिए वोट मांग रहे हैं।
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हनुमान बेनीवाल
एक समय भैरोसिंह शेखावत सरकार के खिलाफ आंदोलन खड़ा करने वाले जाट नेता Hanuman Beniwal के राजनीतिक जीवन की शुरुआत भाजपा से ही हुई थी लेकिन अपने बागी तेवरों के काऱण वे लम्बी पारी नहीं खेल सके और कभी पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे तो कभी मौजूदा सीएम अशोक गेहलोत के खिलाफ आग उगलते रहे । पिछले चुनावों में भी उन्होंने नागौर से चुनाव लड़कर कांग्रेस का खेल बिगाड़ दिया था। पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा और कांग्रेस दोनों के खिलाफ प्रचार किया लेकिन अब पीएम मोदी को विकल्प बताकर भाजपा से जुड़ गए और गठबंधन के लिए वोट मांग रहे हैं ।
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किरोड़ी सिंह बैंसला
कभी वसुंधरा सरकार के समय गुर्जर आंदोलन की शुरुआत करने वाले कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला राजनीति में खुद को स्थापित नहीं कर पाए हैं । 2009 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन 2013 में कांग्रेस को समर्थन दे दिया वहीं 2018 में राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद बैंसला ने अशोक गहलोत की सरकार के खिलाफ भी गुर्जर आरक्षण की मांगों को लेकर मोर्चा खोल था और अब दोबारा अपने बेटे विजय बैंसला के साथ भाजपा में शामिल हो गए।
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घनश्याम तिवारी
जनसंघ से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाले और राजस्थान में भाजपा के सबसे वरिष्ठ नेताओं में गिने जाने वाले तिवारी अब कांग्रेसी हो गए हैं । लम्बे समय तक वसुंधरा राजे की मुखालफत करने वाले तिवारी धीरे-धीरे पार्टी से साइड लाइन होते गए और विधानसभा चुनावों में बगावत कर भारत वाहिनी बनाई लेकिन खुद चुनाव हार गए और जीवन भर जिस विचारधारा और पार्टी के खिलाफ लड़े अब उसी में देश का भविष्य देखते हैं ।
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मानवेन्द्र सिंह
जसवंत सिंह जसोल और राजे परिवार के बीच एक समय घनिष्टता हुआ करती थी ।जसोल परिवार का आरोप है कि जब 2014 में जसवंत सिंह बाड़मेर से अपना आखिरी चुनाव लडऩा चाहते थे तो वसुंधरा राजे ने ही उनका टिकट कटवाया था। तब केंद्रीय नेतृत्व ने जसवंत सिंह को मनाने की लाख कोशिशें भी की थी लेकिन उनका कहना था कि टिकट काटने का तरीका बेदह अपमानजनक था। आखिरकार जसवंत लड़े और हारे। निराशा में घिरे जसवंत आज कौमा में हैं, जसोल परिवार आज भी इसका जिम्मेदार वसुंधरा राजे को ही मानता हैं। यही वजह है की आज मानवेन्द्र कांग्रेस में हैं और राजे के खिलाफ चुनाव भी लड़ चुके हैं ।
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किरोड़ी लाल मीणा
पहले भाजपा फिर खुद की पार्टी बनाकर कांग्रेस से गठबंधन और अब दोबारा भाजपा में शामिल हो चुके किरोड़ी लाल मीणा प्रदेश के बड़े नेताओं में शुमार हैं हालांकि, माना जाता है कि मीणा की लोकप्रियता और उनका आधार धीरे-धीरे नीचे जा रहा है। इस वजह से आने वाले चुनाव में उनके प्रभाव वाले क्षेत्र में भजपा की हार -जीत उनका राजनीतिक भविष्य भी तय करेंगे । कभी वसुंधरा राजे के धुरविरोधी रहे मीणा को आज उनके करीबी नेताओं में से एक हैं । लेकिन रमेश मीणा और ओम प्रकाश हूडला जैसे युवा नेता किरोड़ी लाल की लोकप्रियता में सेंध लगा चुके हैं।

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