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Organ Donation Day: राजस्थान सरकार ने रोकी कोटा ब्रेन डेड कमेटी की सांस, 2 साल बाद भी फाइलों से नहीं निकल सकी बाहर

राजस्थान सरकार ने कोटा ब्रेन डेड कमेटी की सांस ही रोक दी। अंगदान की आस में कमेटी दो साल से सरकारी मंजूरी का इंतजार कर रही है।

कोटाNov 27, 2017 / 01:45 pm

​Vineet singh

Rajasthan government not granted Kota brain dead committee

रक्तदान और नेत्रदान के प्रति जागरूकता के बाद अब कोटा में अंगदान के लिए भी लोग आगे आने लगे हैं, लेकिन इन अंगों को निकालकर आगे किसी के उपयोग में भेजने के लिए अब तक स्वीकृति नहीं मिली है। स्वीकृति के अभाव में यहां अंगदान नहीं हो पा रहे है। अंगदान लेने के लिए बनाई गई ‘ब्रेन डेड कमेटी’ को अब तक मंजूरी नहीं मिली है।
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कागजों से बाहर नहीं निकल सकी कमेटी

कोटा में ब्रेन डेड कमेटी को बने हुए दो साल से भी अधिक समय बीत गया। कागजी कमेटी के चलते अंगदान प्रक्रिया कागजों से बाहर नहीं निकल पा रही है। मेडिकल कॉलेज प्रशासन की उदासीनता के चलते चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के निदेशालय से अंगदान की मंजूरी नहीं मिल सकी है। आज राष्ट्रीय अंगदान दिवस है। सरकार इसे धूमधाम से मना रही है, लेकिन कोटा ब्रेन डेड कमेटी को कोमा से बाहर निकालने की किसी को सुध नहीं है।
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मंजूरी को फिर भेजा पत्र

ब्रेन डेड कमेटी के अध्यक्ष डॉ. विजय सरदाना ने बताया कि मेडिकल कॉलेज प्रशासन की ओर से एक माह पहले निदेशक को स्वीकृति देने के लिए दोबारा पत्र भेजा गया है। निदेशालय की स्वीकृति के बिना अब तक कमेटी को मंजूरी नहीं मिल सकी है। मंजूरी मिलने के बाद ही ब्रेन डेड कमेटी आगे काम कर सकेगी। कमेटी में शामिल ब्रेन डेड कमेटी ही मरीज को ब्रेन डेड घोषित कर सकेगी। मरीज के परिजनों की सहमति से आर्गन ट्रांसप्लांट किए जा सकेंगे। कमेटी में डॉ. सरदाना के अलावा डॉ. दिलीप माहेश्वरी, डॉ. एसएन गौतम, डॉ. मीनाक्षी शारदा, डॉ. मुकेश सोमवंशी, डॉ.राकेश शर्मा शामिल हैं।
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चाहिए रिट्राइवल सेंटर भी

डॉ. सरदाना ने कहा कि निदेशालय को भेजे प्रस्ताव में बताया है कि मेडिकल कॉलेज में रिट्राइवल सेंटर के लिए जगह उपलब्ध है। कमेटी को मंजूरी मिलने के साथ एक बार फिर से रिट्राइवल सेंटर के लिए प्रयास किए जाएंगे। यहां से अंगों को देने के लिए जयपुर स्थित महात्मा गांधी हॉस्पिटल को अधिकृत किया हुआ है।
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हर माह होते हैं 20 से 25 ब्रेन डेड

ऑर्गन ट्रांसप्लांट कॉर्डिनेटर की टे्रनिंग ले चुके डॉ. कुलवंत गौड़ ने बताया कि कोटा में हर माह 20 से 25 लोग ब्रेन डेड हो जाते है। कोटा में अंगदान के लिए लोग आगे भी आ सकते हैं, लेकिन इस दिशा में कोटा मेडिकल कॉलेज की चाल बेहद सुस्त है। लिविंग डोनर के माध्यम से सिर्फ करीबी रिश्तेदारों को ही फायदा होता है, जबकि कैडेबर डोनेशन से अनजान लोगों को भी नया जीवन मिल सकता है।
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एक का अंगदान बचाता है 8 लोगों का जीवन

एक ब्रेन डेड व्यक्ति के अंगदान से 8 लोगों का जीवन बचा सकता है। ब्रेन डेड व्यक्ति का एक लीवर, दो किडनी, दो आंखें, एक हार्ट, एक अग्नाश्य, और एक आंत दूसरे मरीज के काम आ उसकी जिंदगी बचा सकती है। नए प्रयोगों के रूप में बच्चेदानी भी ट्रांसप्लांट की जाने लगी है। एक मां अपना गर्भाशय दान करके अपनी बेटी के मां बनने का सपना पूरा कर सकती है, लेकिन यह तब तक संभव नहीं हो सकता, जब तक कि कोटा ब्रेन डेड कमेटी कागजों से बाहर निकल कर हकीकत नहीं बनती।
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कमेटी का ये है काम

जिस मरीज का मस्तिष्क काम करना बंद कर दे और उसके शरीर के बाकी अंग काम करते रहे। ब्रेनडेड कमेटी एेसे मरीज की जांच कर उसे ब्रेन डेड घोषित करती है। परिवार की सहमति से उस व्यक्ति के अंगों को दूसरे व्यक्ति को लगाया जाता है।

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