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कुचामन शहर

दोनों आंखों से अंधा, लेकिन हाथ के हुनूर से बदला जिन्दगी का रंग

रामनिवास कुमावत. कुचामनसिटी. Blinded by both eyes, but the color of life changed from Hunur in hand
एक ऐसे व्यक्ति की कहानी, जिन्हें उम्र के आधे पड़ाव में अंधा करार दिया गया था, लेकिन इनकी इस विसंगति ने उनके जीने के जज्बे को कभी कम नहीं होने दिया। परिवार के तैरह सदस्यों का भरण पोषण करने के लिए अंधा होने के बावजूद विद्यालयों व बैंकों में बुक जिल्द साजी का कार्य करते रहे। इस शख्सियत के कार्य को देखकर यही प्रेरणा मिलती है चाहे परिस्थितियां कैसी भी, लेकिन डटकर मुकाबला करना।

कुचामन शहरOct 21, 2019 / 06:51 pm

Hemant Joshi

kuchaman. Blinded by both eyes, but the color of life changed from Hunur in the ,kuchaman. Blinded by both eyes, but the color of life changed from Hunur in hand

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Blinded by both eyes, but the color of life changed from Hunur in hand जिंदगी शायद ही किसी के लिए सब कुछ लेकर आती हो। हर व्यक्ति कभी कुछ पाता है तो कभी खोता भी है, लेकिन सबकुछ खोने के बाद संभलना ही शायद जिन्दगी से लडऩा कहता है।
ऐसी ही दास्तान ग्राम खोरण्डी के आसपास बुक जिल्द साजी (बाईडिंग) का कार्य करने वाले महबूब अली की है। दृष्टिहीन महबूब अली मुलत: सीकर के रहने वाले है, लेकिन इन दिनों में खोरण्डी, लालास, घाटवा सहित आसपास के गांवों में घुमकर बैंकों व विद्यालयों में बुक जिल्द साजी का कार्य कर रहे है। दृष्टिहीन महबूब के कार्य को देखकर हर कोई आश्चर्यचकित रह जाता है।
टूटा मुश्बितों का पहाड़, लेकिन हार नहीं मानी
Blinded by both eyes, but the color of life changed from Hunur in hand दृष्टिहीन महबूब अली ने बताया कि सीकर की सरकारी विद्यालय में सन् 1968 में आठवीं में पढ़ते समय विद्यालय में ही रजिस्ट्रर, किताबे, नोट बुक के बुक जिल्द साजी का काम कर कार्य सीख लिया। इसके बाद करीब 10-12 वर्ष तक सीकर में ही एक दुकान पर नौकरी करने के बाद खुद का काम करने लग गए। काम करते-करते सन् 2001 में अचानक ही सिर में दर्द होने से एक आंख से अंधा हो गया। चिकित्सकों को दिखाया, लेकिन आंख का उपचार नहीं हुआ। एक आंखे से ही वे काम करते रहे, लेकिन ईश्वर को भी कुछ ओर ही मंजूर था। दो वर्ष बाद दूसरी आंख से भी अंधा हो गया। बहुत से चिकित्सकों को दिखाया, लेकिन हर जगह से ही निराशा ही हाथ लगी। दोनों आंखों से अंधा होने पर महबूब अली के सामने मुश्बितों का पहाड़ टूट गया, लेकिन दृष्टिहीन महबूब अली ने हार नहीं मानी। महबूब ने बताया कि मैंने इसे अपनी किस्मत के रूप में स्वीकार किया। क्योंकि हमारे पास इतने पैसे नहीं थे कि वह किसी बड़े अस्पताल में आंखों का उपचार करवा सके। उसने बताया कि तैरह सदस्यों के परिवार के भरण-पोषण के लिए डटकर संघर्ष किया। अपने बड़े बेटे को साथ लेकर फिर से काम करने लग गया। तथा आज भी आम आदमी की तरह बुक जिल्द साजी का काम कर रहा है। महबूब ने बताया कि घर में किसी काम को लेकर मदद की जरूरत नहीं पड़ती है। तथा बुक जिल्द साजी के कार्य भी पहले की तरह बखूबी कर लेता है। लेकिन घर से बाहर आने-जाने के लिए अपने बड़े बेटे को साथ रखता है।
मलाल: नहीं देख सका किसी भी दामाद व बहु का चेहरा
दृष्टिहीन महबूब अली के सात पुत्रियां व चार पुत्र है। पुत्रियां सबसे बड़ी है। दोनों आंखों की रोशनी चले जाने के बाद सभी पुत्र-पुत्रियों की शादी की। लेकिन उसे मलाल इस बात का है कि दोनों आंखों की रोशनी जाने के कारण एक भी दामाद व पुत्रवधु का चेहरा नहीं देख सके। वे केवल आवाज से ही पुत्री, पुत्र व दामाद को पहचानते है। दृष्टिहीन महबूब अली ने बताया कि आज वे 62 वर्ष के हो गए है, लेकिन 16 वर्षो से दुनिया का रंग नहीं देखा।
प्रेरणा: धैर्य रखें और हालातों से करें संघर्ष
दृष्टिहीन महबूब अली युवाओं के सामने प्रेरणा के स्त्रोत है। महबूब अली का कहना है कि आज की युवा पीढ़ी में धैर्य नहीं है। जीवन में थोड़ी सी भी परेशानी आने पर आत्महत्या जैसा गलत कदम उठा लेते है। महबूब अली का कहना है कि युवा पीढ़ी को थोड़ा धैर्य रखने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि यदि मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा है तो बड़े से बड़े संघर्ष का भी मुकबला किया जा सकता है।

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