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लखनऊ

पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत…उतरा है रामराज विधायक निवास में

पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें, संसद बदल गयी है यहां की नखास में।

लखनऊOct 23, 2017 / 11:56 am

नितिन श्रीवास्तव

Adam Gondavi biography Ghazal Gonda UP India HIndi News

पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत…उतरा है रामराज विधायक निवास में

लखनऊ. अदम गोंडवी का जन्म उत्तर प्रदेश के गोंडा में 22 अक्टूबर, 1947 को हुआ था। माता-पिता ने इनका नाम रामनाथ सिंह रखा। रामनाथ सिंह शायर के रूप में अदम गोंडवी के नाम से प्रसिद्ध हुए। अदम गोंडवी का निधन 18 दिसंबर, 2011 को हुआ। अदम गोंडवी को दुष्यंत कुमार और मुकुट बिहारी सरोज सम्मान भी मिला। लेकिन जनता के दिलों में अदम गोंडवी ने अपनी जो जगह बनाई और जो सम्मान पाया, वह किसी भी साहित्यिक सम्मान से बड़ा है। अदम गोंडवी की कुल तीन कृतियां सामने आईं जिनके नाम हैं- गर्म रोटी की महक, समय से मुठभेड़ और धरती की सतह पर।
जनता में था अदम गोंडवी का था जादू

प्राइमरी तक शिक्षा प्राप्त और जीवन भर खेती-किसानी में लगे अदम गोंडवी ने ज्यादा तो नहीं लिखा, पर जो भी लिखा वह जनता की जुबान पर चढ़ गया। अदम गोंडवी ने गरीब-मजलूमों के दर्द और उनके जज्बातों को अपनी कलम की स्याही में भर कर हिंदी गजल के हवाले से अवाम के सामने पेश किया। उनकी शायरी ने लोगों की आवाज बनकर समाज और सरकार के दोहरे रवैये को चुनौती दी। उनके इसी खास योगदान के लिए उन्हें हिंदी गजल में दुष्यंत कुमार की रवायत को आगे बढ़ाने वाला शायर माना जाता है। अदम गोंडवी ने अपनी गजलों में भूख, गरीबी और मजबूरों के दर्द को जोड़ा जिन्हें कोई नहीं पूछता था। पेश हैं उनकी कुछ गजलें …
काजू भुने प्लेट में विस्की गिलास में,

उतरा है रामराज विधायक निवास में।

पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत,

कितना असर है खादी के उजले लिबास में।

आजादी का वो जश्न मनाएं तो किस तरह,
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में।

पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें,

संसद बदल गयी है यहां की नखास में।

जनता के पास एक ही चारा है बगावत,
यह बात कह रहा हूं मैं होशो-हवास में।

मुफलिसों की भीड़ को गोली चलाकर भून दो,

दो कुचल बूटों से औसत आदमी की प्यास को।

मज़हबी दंगों को भड़का कर मसीहाई करो,
हर क़दम पर तोड़ दो इन्सान के विश्वास को।

तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है,

मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है।

तुम्हारी मेज चांदी की तुम्हारी ज़ाम सोने के,
यहां जुम्मन के घर में आज भी फूटी रक़ाबी है।

भूख के एहसास को शेरो-सुख़न तक ले चलो,

या अदब को मुफ़लिसों की अंजुमन तक ले चलो।

जो ग़ज़ल माशूक के जलवों से वाकिफ हो गई,
उसको अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो।

मुझको नज़्म-ओ-ज़ब्‍त की तालीम देना बाद में,

पहले अपनी रहबरी को आचरन तक ले चलो।

गंगाजल अब बुर्जुआ तहज़ीब की पहचान है,
तिश्नगी को वोदका के आचरन तक ले चलो।

ख़ुद को जख्मी कर रहे हैं गैर के धोखे में लोग,

इस शहर को रोशनी के बांकपन तक ले चलो।

घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है,
बताओ कैसे लिख दूं धूप फागुन की नशीली है।

सुलगते जिस्म की गर्मी का फिर एहसास हो कैसे,

मोहब्बत की कहानी अब जली माचिस की तीली है।

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