रिटायर्ड आई पी एस बृजलाल ने अपने शब्दों में कहा कि गोरखपुर के हरिशंकर तिवारी का मुख्तार अंसारी से पहले से ही अच्छा सम्बन्ध था। मैदान खाली था, जिसे आसानी से कब्जाया जा सकता था। ( Mukhtar Ansari Lucknow Kabza ) मुख्तार ने इस स्थिति को अवसर के रूप में लिया और अपना तन्त्र बढ़ाना शुरू किया। वर्चस्व कायम करने के लिए पुलिस और प्रशासन में मजबूत पकड़, राजनैतिक मजबूती, धन-बल से मजबूत सहयोगी और दबंगई करने के लिए शूटर आवश्यक होते है।
रिटायर्ड आई पी एस बृजलाल ने बताया कि मुख्तार अंसारी के पास यह चारों सुविधाएँ उपलब्ध थी। 1996 में बसपा से विधायक चुने जाने के बाद उसका सम्बन्ध राजनीतिज्ञों के अलावा कुछ अधिकारियों से बन गये थे। कई प्रशासनिक और वरिष्ठ पुलिस अधिकारी उसके घर आते-जाते थे, जिसमें से कुछ उत्तर प्रदेश के डीजीपी भी रहें। ( Mukhtar Ansari Lucknow Gang ) उन्होंने कहा कि धन के लिए मुख्तार ने ‘मिल्की मुसलमानों’ को लखनऊ में लाकर स्थापित किया, जो बड़े बिल्डर के रूप में काम करने लगे। इस कड़ी में राशिद नसीम सीएमडी शाइन सिटी इंफा कंपनी, शाहिद सिद्दीकी शोहरामऊ उन्नाव, राजे सिद्दीकी, अरशद एफ आई बिल्डर प्रयागराज और वाहिद सिद्दीकी लखनऊ में बड़े बिल्डर के रूप में स्थापित हो गये। शाइन सिटी का राशिद नसीम तो निवेशकों के हजारों करोड़ रुपये लेकर विदेश भाग गया।
मुख्तार अंसारी गैंग राजधानी लखनऊ में मजबूती से सक्रिय हो गया। सरकारी ठेके हथियाए जाने लगे। मुख्तार अंसारी ने स्वयं हजारों करोड़ की जमीनों पर कब्जा करके व्यवसायिक और आवासीय घर बनाये। डीजीपी निवास के बगल में शत्रु संपत्ति की जमीन पर आलीशान कोठियां बनवायी। अक्टूबर 2005 में दशहरा के अवसर पर मऊ में साम्प्रदायिक दंगा हुआ जिसमें मुख्तार अंसारी खुली जिप्सी में हाथ में राइफल लेकर मऊ की सड़कों पर घूम-घूम कर अपने सहयोगी दंगाईयों का मनोबल बढ़ाता रहा। इस दंगे में एक दर्जन से अधिक लोग मारे गये और करोड़ों की सम्पत्तियाँ जलाकर राख कर दी गयी।
मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी सरकार उसे बचाती रही, परन्तु इस गंभीर साम्प्रदायिक घटना से सरकार की किरकिरी होने लगी। लखनऊ में समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ मंत्री ने उसे गोपनीय रूप से लखनऊ बुलाया और विचार-विमर्श करने के बाद उसे न्यायालय में आत्मसमर्पण करने के लिए कहा गया। मुख्तार अंसारी 25 अक्टूबर 2005 को गाजीपुर न्यायालय में आत्मसमर्पण करके जेल चला गया और वर्ष 2022 तक उसे जेल में 17 वर्ष बीत चुके है। जेल में रहते हुए वह मऊ विधानसभा सीट से 2007, 2012 और 2017 में लगातार विधायक रहा। समाजवादी पार्टी की सरकार में जेल में रहते हुए उसका सिक्का चलता था। विधायक, मंत्री और तमाम सम्भ्रान्त कहे जाने वाले लोग उससे जेल में मिलने जाते थे।
मुख्तार के लिए जेल एक आशियाना बन चुका था। उसके द्वारा जेल में ही दरबार लगाया जाता था, लोगों की पंचायत कराकर निर्णय दिये जाते थे। ठेकेदारी किसे मिलनी है, यह सब मुख्तार द्वारा जेल में रहते हुए तय किया जाता था। विधान सभा सत्र के दौरान जब वह जेल से सत्र में भाग लेने के लिए आता था तो वह बेखौफ डीजीपी कार्यालय, सचिवालय में घूमता रहता था। जेल में पेशी के दौरान रास्ते में पचासों गाड़ियों का काफिला चलता था। अपना काम करवाने वाले लोग उससे संबंधित अधिकारियों से बात कराते थे। जेल में उसकी शाही सुख-सुविधा का पूरा इंतजाम रहता था। गाजीपुर जेल में तो उसके लिए मछली का तालाब तक बनवाया गया। कई डीएम, एसपी जेल में मुख्तार अंसारी के साथ बैडमिंटन खेलने जाते थे।
जेल में रहते हुए मुख्तार अंसारी अपना आपराधिक, राजनैतिक और आर्थिक तंत्र मजबूत करता रहा। रियल स्टेट और ठेकों में उसने विशेष रूचि ली और हजारों करोड़ कमाये। जेल में रहते हुए उसने तमाम सनसनीखेज हत्याएं करवायीं, जिसमें भाजपा के विधायक कृष्णा नन्द राय की 29 नवम्बर 2005 को की गयी हत्या भी शामिल थी।