इंजेक्शन लगने के भय (इंजेक्शन फोबिया) के चलते बच्चे रोने लगते हैं और इसी डर के चलते वह अपने को बीमार या कमजोर महसूस करने लगते हैं। बच्चों के अन्दर से इसी भय को दूर करने के लिए स्कूलों को स्पष्ट निर्देश हैं कि टीका लगने के दौरान अभिभावक भी मौजूद रहें ताकि बच्चे घबराएं नहीं, अभियान में जुटीं टीमें भी एहतियात बरतें कि यदि किसी बच्चे को गंभीर बीमारी, बुखार आदि है तो उसे टीका इलाज उपरान्त लगाया जाए। इसके अलावा टीकाकरण के दौरान बच्चों को ऐसा माहौल दिया जाए ताकि बच्चे के अन्दर का भय अपने आप ख़त्म हो जाए।
इससे घबराने की जरुरत नहीं है
राज्य प्रतिरक्षण अधिकारी डॉ. ए. पी. चतुर्वेदी ने बुधवार को यहाँ विशेष बातचीत के दौरान कहा कि नौ माह से 15 साल तक के बच्चों को लगने वाला एमआर टीका पूर्ण रूप से सुरक्षित है। कभी-कभी कुछ एक बच्चों को टीकाकरण के बाद हल्की एलर्जी हो सकती है। इंजेक्शन लगने वाली जगह पर लालिमा, सूजन और हल्का चक्कर आ सकता है। यह बहुत ही सामान्य मामला है, इससे घबराने की जरुरत नहीं है। इस टीके के जरिये बच्चों को कई तरह की बीमारियों से बचाया जा सकता है। लड़कियों के लिए तो यह कई मायने में बहुत ही खास है क्योंकि यह वर्तमान के साथ ही भविष्य में उनके मां बनने के दौरान रूबेला से संक्रमण के कारण गर्भपात का खतरा बना रहता है तथा गर्भवती महिला से पैदा होने वाले बच्चे में संक्रमण होने से बच्चे में सी.आर.एस. (कन्जेनाइटल रूबेला सिंड्रोम) होने का खतरा होता है, जिससे जन्म लेने वाले शिशु जन्मजात ह्रदय रोग, बहरापन, अंधापन, मानसिक दिक्कतों जैसे गंभीर बिमारियों से ग्रस्त होते हैं।
राज्य प्रतिरक्षण अधिकारी डॉ. ए. पी. चतुर्वेदी ने बुधवार को यहाँ विशेष बातचीत के दौरान कहा कि नौ माह से 15 साल तक के बच्चों को लगने वाला एमआर टीका पूर्ण रूप से सुरक्षित है। कभी-कभी कुछ एक बच्चों को टीकाकरण के बाद हल्की एलर्जी हो सकती है। इंजेक्शन लगने वाली जगह पर लालिमा, सूजन और हल्का चक्कर आ सकता है। यह बहुत ही सामान्य मामला है, इससे घबराने की जरुरत नहीं है। इस टीके के जरिये बच्चों को कई तरह की बीमारियों से बचाया जा सकता है। लड़कियों के लिए तो यह कई मायने में बहुत ही खास है क्योंकि यह वर्तमान के साथ ही भविष्य में उनके मां बनने के दौरान रूबेला से संक्रमण के कारण गर्भपात का खतरा बना रहता है तथा गर्भवती महिला से पैदा होने वाले बच्चे में संक्रमण होने से बच्चे में सी.आर.एस. (कन्जेनाइटल रूबेला सिंड्रोम) होने का खतरा होता है, जिससे जन्म लेने वाले शिशु जन्मजात ह्रदय रोग, बहरापन, अंधापन, मानसिक दिक्कतों जैसे गंभीर बिमारियों से ग्रस्त होते हैं।
ताकि बच्चे असहज न महसूस करें टीकाकरण अभियान शुरू करने से पहले इससे जुड़ीं टीमों को बाकायदा प्रशिक्षित किया गया है। टीमों को बताया गया है कि टीकाकरण के दौरान शिक्षक स्कूल में एक आचरणयुक्त वातावरण बनाएं ताकि बच्चे असहज न महसूस करें। शिक्षक खुद भी टीकाकरण स्थल पर मौजूद रहें और इस दौरान अभिभावकों की किसी भी जिज्ञासा को शांत करने का प्रयास करें। इसके लिए स्कूल में टीकाकरण के लिए कम से कम तीन कमरों की व्यवस्था होनी चाहिए। एक कमरे में बच्चों को टीकाकरण के लिए कक्षानुसार बैठाएं। दूसरे कमरे में एएनएम बच्चों को टीका लगाएगी।
सुपरवाइजर या एएनएम को बताएं टीका लगने के बाद बच्चा तीसरे कमरे में जाएगा, जहाँ पर वह शिक्षकों की निगरानी में आधे घंटे बाकायदा आराम करेगा। उस कमरे में बच्चों के मनोरंजन के लिए खेल, कोई कार्टून फिल्म आदि की व्यवस्था हो ताकि बच्चा इंजेक्शन लगने की बात को आसानी से भुला सके। वहां पर बच्चों के लिए पानी और हल्के नाश्ते की भी व्यवस्था की जा सकती है। इसके बाद भी यदि बच्चों की आँखों में लालिमा नजर आये या बच्चा थका हुआ या कमजोरी महसूस करे तो वहां मौजूद सुपरवाइजर या एएनएम को बताएं।