बदल गया डकैती का अंदाज़ क्रिप्टोकरेंसी आने के बाद अब डकैती का अंदाज बदल गया। पहले डकैती एक काफी जोखिम और अथक परिश्रम वाला कार्य था। यहां तक इसमें गोली लगने पर मौत का खतरा भी रहता था और डकैतों को लूट की रकम छुपाने के लिए भी काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। डकैती के सफल होने के चांस भी काफी कम थे और इन जोखिमों के मुकाबले इसमें डकैतों को ‘रिटर्न’ कम था।
दुनिया की बड़ी बैंक डकैतियाँ बौनी एक फाइनेंशियल वेबसाइट पर छपी खबर के मुताबिक साल 2016 में क्रिप्टो एक्सचेंज बिटफिनिक्स (Bitfinex) पर हमला कर साइबर हैकरों ने 1.2 लाख बिटकॉइन लूट लिया था, जिसकी उस वक्त कीमत 7 करोड़ डॉलर (520 करोड़ रुपये) थी। तब पूरी दुनिया का ध्यान क्रिप्टो हैंकिंग की तरफ गया था। आज उन लूटे गए क्रिप्टोकरेंसी की कीमत 4.5 अरब डॉलर (करीब 33,000 करोड़ रुपये) है, जिसके आगे दुनिया की सभी बड़ी बैंक डकैतियां भी बौनी साबित होंगी।
दो गिरफ्तार इस क्रिप्टो डकैती के सिलसिले में अधिकारियों ने बाद में इल्या लिचेंस्टीन और हीथर मॉर्गन नाम के दो व्यक्तियों को गिरफ्तार किया, जो खुद को बिटकॉइन तकनीक पर फोकस करने वाले “सीरियल आंत्रप्रेन्योर” कहते थे। यह उस समय की याद दिलाता है, जब 18 और 19वीं सदी के प्रसिद्ध बैंक लुटेरे खुद को डकैत के बजाय ‘कलाकार’ मानते थे।
तकनीक आधारित युग में डकैती अब अधिक फायदेमंद हालांकि इसके विपरीत आज के तकनीक आधारित युग में डकैती अब अधिक फायदेमंद दिख रही है। जाहिर सी बात है कि बैंक में सेंध लगाने की तुलना में नेटवर्क में सेंध लगाना काफी सुरक्षित है। उदाहरण के लिए, फरवरी 2016 में हैकर्स ने बांग्लादेश के सेंट्रल बैंक द्वारा विदेशी पेमेंट के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले स्विफ्ट नेटवर्क का इस्तेमाल करके 8 करोड़ डॉलर लूट लिए थे।
बिना खून खराबे के अरबों की डकैती इस करोड़ों रुपये की डकैती के लिए न तो कोई गोली चलाई गई और न ही किसी की जान जोखिम में डाली गई। शायद चोर ने आराम से अपने घर पर कंप्यूटर के सामने बैठकर इस डकैती को अंजाम दिया होगा, वो भी बिना किसी शारीरिक परिश्रम के।
क्रिप्टोकरेंसी के जमाने में तो कई मामले ऐसे भी सामने आए हैं, जहां खुद कई निवेशकों ने अपने मेहनत की कमाई को क्रिप्टो-अपराधियों को सौंप दिया। एक ऐसा ही मामला तुर्की का है, जहां 28 वर्षीय एक शख्स फारुक फातिह ओजर ने क्रिप्टो-एक्सचेंज खोला। लोगों ने उसके क्रिप्टो-एक्सचेंज के जरिए क्रिप्टो में निवेश किया, लेकिन कुछ महीनों बाद तुर्की के सेंट्रल बैंक ने अपने देश में क्रिप्टोकरेंसी को बैन कर दिया। इसके बाद फारुक अपने प्लेटफॉर्म पर मौजूद लोगों के करीब 2 अरब डॉलर के क्रिप्टोकरेंसी को लेकर विदेश भाग गया।
घोटाले का एक और दिलचस्प मामला साउथ अफ्रीका का तो एक मामला और भी दिलचस्प है। वहां रईस और अमीर काजी नाम के दो भाइयों ने क्रिप्टो-एक्सचेंज खोला। लोगों ने उसके जरिए 3.6 अरब डॉलर के क्रिप्टो खरीदे। फिर एक दिन अचानक दोनों भाइयों ने कहा कि उनके क्रिप्टो-एक्सचेंज को हैक कर लिया गया है और लोगों के वॉलेट और अकाउंट में जमा सभी पैसे और क्रिप्टो चोरी हो गए है। इसके बाद से दोनों भाइयों का कहीं कोई पता नहीं है। अफ्रीकी सरकार पिछले दो सालों से इन भाइयों की तलाश में है।
भारत में आ चुका है मामला भारत में भी कुछ क्रिप्टो घोटाले सामने आ चुके हैं। बेंगलुरु पुलिस ने पिछले साल 25 25 वर्षीय श्रीकृष्ण रमेश उर्फ श्रीकी को गिरफ्तार किया था, जिस पर साइबर फ्रॉड, डार्क वेब के जरिए ड्रग्स की तस्करी, क्रिप्टोकरेंसी की चोरी और यहां तक कि कर्नाटक सरकार के ई-गवर्नेंस पोर्टल से पैसे चुराने का भी आरोप है। यह बताया है कि नए जमाने में डकैती भी अब नए तरीके से होने लगी है।