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लखनऊ

Fetal Blood Transfusion: SGPGI ने रचा इतिहास, गर्भ में भ्रूण को चढ़ाया खून, मुस्कराई जिंदगी

– SGPGI में पांच बार गर्भ पात हो चुके महिला का किया इलाज
– एक ही गर्भनाल एस एक जैसे जुड़े बच्चों को चढ़ाया खून
– दुनिया की मेडिकल हिस्ट्री में यह इकलौती अनूठी कामयाबी

लखनऊJul 13, 2019 / 05:16 pm

Karishma Lalwani

sgpgi

SGPGI ने रचा इतिहास, गर्भ में भ्रूण को चढ़ाया खून, मुस्कराई जिंदगी

लखनऊ. एसजीपीजीआई (SGPGI) के चिकित्सकों ने गर्भ में पल रहे जुड़वां भ्रूण में ब्लड ट्रांस्फ्यूजन (Fetal Blood Transfusion) कर बड़ी कामयाबी हासिल की है। एसजीपीजीआई का दावा है कि दुनिया के चिकित्सीय रिकार्ड में अब तक जुड़वां भ्रूण खासकर एक ही ग्रभनाल से जुड़े एक जैसे जुड़वां यानी मोनोकोरियोनिक ट्विन को खून नहीं चढ़ाया गया। मेडिकल लिट्रेचर में भी इस पर कोई गाइडलाइन नहीं है।
गोंडा की सबीना का पांच बार गर्भपात हो चुका है। खून की कमी या किसी अन्य कारण से सबीना पांच बार गर्भ में ही बच्चों को खो चुकी हैं। ऐसे में छठी बार प्रेग्नेंसी में भी रिस्क हाई था। सबीना के गर्भ में पल रहे जुड़वां भ्रूण का वजन 300 ग्राम था जिससे गर्भपात का खतरा ज्यादा था। ऐसे जटिल केस को मैटरनल एंड प्रोडक्टिव हेल्थ डिपार्टमेंट की डॉ. मंदाकिनी प्रधान और उनकी टीम ने सॉल्व किया। उन्होंने सबीना के गर्भ में पल रहे जुड़वां भ्रूण में ब्लड ट्रांसफ्यूजन कर न सिर्फ उन्हें नई जिंदगी दी बल्कि उनकी गोद में हंसती खिलखिलाती दो बेटियां डाल दीं।
पहली बार सामने आया ऐसा केस

मैटरनल एंड प्रोडक्टिव हेल्थ डिपार्टमेंट की डॉक्टर मंदाकिनी प्रधान के नेतृत्व में Fetal blood transfusion करने वाली टीम का दावा है कि चिकित्सीय रिकार्ड में ऐसा पहली बार हुआ है कि एक ही गर्भनाल से जुड़े एक जैसे जुड़वां बच्चों को खून चढ़ाया गया हो। यह बहुत जटिल केस था। थोड़ी सी लापरवाही दोनों बच्चों के लिए घातक हो सकती थी।
डॉ. मंदाकिनी ने बताया कि सबीना का ब्लड ग्रुप नेगेटिव था और उनके पति जमीर का पॉजिटिव। भ्रूण में खून की कमी भी थी, जिससे बच्चों की जान जाने का खतरा था। दोनों की गर्भनाल भी एक होने से यह ध्यान रखना जरूरी था कि किसे खून चढ़ाया जाए और किसे नहीं। जरा सी चूक से यह हो सकता था कि एक भ्रूण को खून चढ़ाया जाए और दूसरा रह जाए। ऐसे में बारिकी से सबीना का इलाज किया गया। अल्ट्रासाउंड और भ्रूण की माप करते हुए दोनों बच्चियों में अंतर कर ट्रांसफ्यूजन किया गया। इस केस में डॉ. मंदाकिनी के साथ डॉ. नीता, डॉ. संगीता और डॉ. श्रुति शामिल रहीं।
पॉजिटिव-नेगेटिव ब्लड ग्रुप से बढ़ी मुसीबत

मां सबीना का ब्लड ग्रुप नेगेटिव और पिता जमीर अहमद का पॉजिटिव था। ऐसे में आशंका थी की बच्चों का ब्लड ग्रुप भी पॉजिटिव ही हो। ऐसा होने पर बच्चों का पॉजिटिव ब्लड ग्रुप मां के नेगेटिव ब्लड ग्रुप से मिल जाता। इससे भ्रूण में रक्त का संचार रूक सकता था। डॉ. ने बताया कि सबीना के पांच बार हुए गर्भपात का कारण भी पॉजिटिव-नेगेटिव खून मिलना ही है। ऐसा इस बार भी न हो, इसलिए भ्रूण को खून चढा़ने की जरूरत पड़ी। हालांकि, प्लेसेंटा जुड़े होने से खून चढ़ाने में दिक्कत जरूर हुई।
आयुष्मान योजना से हुआ इलाज

सबीना का इलाज बिना आयुष्मान योजना (Ayushman Yojana) के हो पाना थोड़ा मुश्किल था। आर्थिक हालत ठीक न हो पाने के कारण सबीना और जमीर को महंगा इलाज करा पाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा। जमीर ने बताया कि आयुष्मान योजना के तहत पांच लाख रुपये मिले और इलाज में आने वाली सारी मुश्किलें दूर हुईं।

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