परिवार से दो महीने तक दूर, पर नहीं मानी हारीं एक उदाहरण है कानपुर मेडिकल कॉलेज हैलट की नर्स अनुपमा लता। पहली और दूसरी कोरोना की लहर में जब लोग दहशत में रहे और कोरोना मरीज के पास जाने तक में कांपते रहे तब अनुपमालता हैवी वायरल लोड के बीच कोविड मरीजों की सेवा में लगी हैं। पांच बार कोविड में ड्यूटी करने के बाद जब खुद संक्रमित हो गईं तो दहशतजदा हो गईं। दो महीने तक परिवार से अलग रहीं लेकिन कोविड की ड्यूटी करने से पीछे नहीं हटीं। ओमीक्रोन की तीसरी लहर में भी उन्हें ड्यूटी करनी पड़ी। अनुपमालता कहती हैं कि कोविड में सुबह से रात तीमारदारी, दवाओं और ऑक्सीजन का प्रबंधन करना बेहद मुश्किल कार्य रहा। संक्रमित हुईं तो डर लगा पर मरीजों के दर्द के आगे अपना दर्द भूल गए। 10 घंटे तक पीपीई किट पहनकर काम करना दुरूह कार्य रहा क्योंकि पीपीई किट में ड्यूटी करने में कई बार उलझन भी होने लगती रही पर कोविड वार्ड से अपने समय 57 कोरोना मरीजों के ठीक होकर डिस्चार्ज हुए है।
यह भी पढ़े – सोमवार को बुद्ध पूर्णिमा, जानें शुभ मूहुर्त, होगा चंद्रग्रहण भूलकर भी न करें ये काम मरीजों से दुआओं से मौत के मुंह से वापस लौटी श्वेता अब तो लोग कोरोना काल को भूल गए हैं लेकिन स्टाफ नर्स श्वेता शर्मा को वह दिन अभी भी याद हैं। कोरोना वायरस ने डर के साथ कई लोगों को नए जज्बे के साथ लड़ने की भी सीख दी है। स्टाफ नर्स श्वेता की माने तो कोविड मरीजों की तीमारदारी का हौसला हर समय रहा लेकिन जब मरीजों की सेवा करते-करते संक्रमित हुए और आक्सीजन लेवल गिरने लगा तो डर गए थे पर ठीक होकर डिस्चार्ज हुए उस दौर के मरीजों की दुआएं ही रहीं कि कोविड की जटिलताओं के बाद भी वह 14 दिन के बाद ठीक हो गईं। मरीजों के चेहरों की खुशी ने उन्हें कोविड से लड़ने का हौसला दिया वरना डर तो हर कोई रहा था।
इंटरनेशनल नर्सेस डे 2022 की थीम इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्सेस (International Council of Nurses) की ओर से इस बार इंटरनेशनल नर्सेस डे 2022 की थीम है। ‘नर्सेस : ए वॉयस टू लीड- इन्वेस्ट इन नर्सिंग एंड रिस्पेक्ट राइट्स टू सिक्योर ग्लोबल हेल्थ’। यानी ‘नर्सेस: नेतृत्व के लिए एक आवाज – नर्सिंग में निवेश करें और ग्लोबल हेल्थ को सुरक्षित रखने के अधिकारों का सम्मान करें।