राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो संभावित महागठबंधन में मायावती कम से कम 40 सीटें या उससे अधिक सीटों की डिमांड कर सकती हैं। इसके लिए पार्टी रणनीतिकार प्लान ‘ए’ और प्लान ‘बी’ पर काम कर रहे हैं। प्लान ‘ए’ के तहत बसपा ने पिछले प्रदर्शन को देखते हुए 50 ऐसी सीटों की लिस्ट तैयार की है, जहां बसपा प्रत्याशी दूसरे या तीसरे नंबर पर रहा था। 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा 34 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी, जबकि समाजवादी पार्टी 31, कांग्रेस 06, रालोद और आम आदमी पार्टी 1-1 सीट पर दूसरे नंबर पर रही थी।
यूपी में नहीं होगा महागबंधन! मायावती बोलीं, बीजेपी-कांग्रेस एक ही थैली के चट्टे-बट्टे
प्लान ‘बी’ के तहत गठबंधन न होने की स्थिति में बसपा अकेले चुनाव लड़ेगी। पार्टी ने अभी से 80 सीटों पर बूथ स्तर की तैयारी शूरू कर दी है। सूत्रों की मानें तो कई असंतुष्ठ भाजपा नेता भी गठबंधन होने या न होने की स्थिति में बसपा के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ना चाहते हैं। ऐसे नेता पर्दे के पीछे से बसपा के संपर्क में हैं। बसपा ने ऐसे सभी बड़े नेताओं को वेट एंड वॉच की स्थिति में रखा है।राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ‘चित भी मेरी, पट भी मेरी’ वर्तमान राजनीति परिदृश्य में मायावती पर यह मुहावरा सटीक बैठता है। मायावती अगर गठबंधन में शामिल होंगी, वही गठबंधन की नेता होंगी। मतलब विपक्ष की सबसे बड़ी नेता। सीटें भी ज्यादा होंगी और कैंडिडेट भी ज्यादा। लेकिन अगर वह अकेले चुनाव लड़ती हैं तो भी उनकी स्थिति मजबूत मानी जा रही है। निकाय चुनाव में जिस तरह से बसपा को जबर्दस्त समर्थन मिला, और पार्टी को दो मेयर विजयी हुए। गठबंधन के संभावित दलों के मुकाबले बसपा की स्थिति ज्यादा मजबूत मानी जा रही है। गोरखपुर-फूलपुर के बाद नूरपुर और कैराना उपचुनाव में भले ही सपा व रालोद प्रत्याशी जीते, लेकिन यह संभव तभी हुआ जब बसपा समर्थकों का वोट इन दलों के प्रत्याशी को ट्रांसफर हुआ।
महागठबंधन में शामिल होगी आम आदमी पार्टी! अखिलेश इतनी सीटें देने को राजी, कांग्रेस पर संशय
मुश्किल होगी सम्मानजनक सीटों की डिमांडसंभावित गठबंधन में अगर मायावती ने 40 या उससे अधिक सीटों की डिमांड रखी तो इसे पूरा कर पाना गठबंधन में शामिल दलों के लिये आसान नहीं होगा। यूपी की कुल 80 लोकसभा सीटों में से अगर 40 सीटें बसपा को दे गईं तो बची 40 सीटों पर बंटवारा काफी मुश्किल चुनौती होगा। सूत्रों की मानें तो यूपी में कांग्रेस 15 सीटें, रालोद 05 सीटें और आम आदमी पार्टी पांच सीटों की डिमांड कर रही है। ऐसे में सपा के लिये कुछ नहीं बचेगा, जबकि उसके साथ पहले से ही निषाद पार्टी है, जिसे कम से कम गोरखपुर सीट तो देनी ही पड़ेगी। अखिलेश यादव गठबंधन में शामिल होने पर आम आदमी पार्टी को एक सीट (गाजियाबाद/गौतमबुद्धनगर) देने की बात कह रहे हैं। कांग्रेस को वह दो सीटों (अमेठी/रायबरेली) से ज्यादा नहीं देना चाहते। ऐसे में सीटों के बंटवारे का पेंच महागठबंधन की सबसे बड़ी बाधा साबित होने वाला है।
अखिलेश यादव भले ही बसपा को अधिक सीटें देने से पीछ नहीं हटने की बात कहकर लचीला रुख अपना रहे हों, लेकिन मायावती बार-बार सम्मानजनक सीटों की बात कहकर अड़ियल रुख अपनाये हैं। अखिलेश कह रहे हैं कि बीजेपी को हराने के लिये वह हर कुर्बानी देने को तैयार हैं, लेकिन मायावती सशर्त ही गठबंधन में शामिल होने बात कह रही हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यूपी में समाजवादी पार्टी किसी भी कीमत पर बसपा से कम नहीं है, लेकिन जिस तरह से अखिलेश यादव हर हाल में गठबंधन की बात कह रहे हैं, राजनीतिक तौर पर उनके लिये ये काफी जोखिम भरा हो सकता है। वक्त से पहले अखिलेश यादव का यूं अपने कदम पीछे खीचना उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता का संकेत है। विश्लेषकों का कहना है कि बीजपी को हराने के लिए अखिलेश कुछ ज्यादा ही झुक गए हैं, जिसका फायदा राजनीति की माहिर खिलाड़ी मायावती उठाना चाहती हैं।