राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो बहुजन समाज पार्टी में बहनजी के आगे किसी की नहीं चलती है। वह कब किसको पार्टी में बड़ी जिम्मेदारी दे दें और कब किसको बाहर का रास्ता दिखा दें यह तो वहीं जानें। लेकिन इतना तो तय है कि जो भी नेता बसपा से अलग हुए हैं, उनसे पार्टी को नुकसान ही पहुंचा है। दूसरे राज्यों की बात करें तो वहां चुने हुए जनप्रतिनिधि ज्यादा दिन हाथी की सवारी नहीं कर पाते। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो यूपी से बाहर के राज्यों में बसपा विधायकों के टूटने के कई कारण हैं। उन्हें लगता है कि राज्य में कभी बसपा की सरकार नहीं आ सकती है, इसलिए मौका देखकर सत्तारूढ़ खेमे में खिसक जाना ही बेहतर है। खासकर उन नेताओं के लिए विपक्ष में बैठे रह पाना मुश्किल होता है, जिन्होंने चुनाव में जमकर पैसा खर्च किया और उनकी खुद की छवि है।
कभी परिवारवाद के आरोपों से दुखी मायावती ने जिस भाई से लिया था पद, अब उन्हीं को सौंपी अहम जिम्मेदारी, बेटे को भी किया शामिल
राजस्थान में बसपा को बड़ा झटका, भड़कीं मायावतीराजस्थान में बहुजन समाज पार्टी के सभी छह विधायक कांग्रेस में शामिल हो गये। निकाय चुनाव से पहले इसे राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का मास्टर स्ट्रोक और बसपा के लिए बड़ा झटका बताया जा रहा है। गौरतलब है कि 2008 में भी अशोक गहलोत के मुख्यमंत्रित्व काल में बसपा विधायक कांग्रेस में शामिल हो गये थे। वहीं, 1995 में राज बहादुर समेत अन्य विधायकों ने मायावती के नेतृत्व को स्वीकारने से मना कर दिया था। नाराज मायावती ने कांग्रेस को धोखेबाज करार देते हुए कहा कि इनकी (कांग्रेस) दोगली नीति की वजह से ही देश में ‘सांप्रदायिक ताकतें’ मजबूत हो रही हैं। क्योंकि, कांग्रेस पार्टी साम्प्रदायिक ताकतों को कमजोर करने के बजाय, इनके विरुद्ध आवाज उठाने वाली ताकतों को ही ज्यादातर कमजोर करने में लगी है।