मायावती मेयर की दो सीटों पर लड़ती दिखीं, इनमें सबसे बेहतर रही सहारनपुर, जहां हारजीत का फर्क 10 हजार से कम रहा है। दूसरी आगरा, यहां भी बसपा एक हद तक लड़कर हारी है। सहारनपुर में बसपा ने मुस्लिम कैंडिडेट दिया था और मुस्लिमों का वोट भी उसको मिला। आगरा में बाल्मिकी कैंडिडेट था लेकिन फिर भी मुसलमानों ने उसको वोट दिया। यानी मुस्लिमों ने सिर्फ मुस्लिम देखकर बसपा को वोट नहीं दिया।
सीट दर सीट बात करें तो सहारनपुर में मुस्लिमों के वोट का बड़ा हिस्सा बसपा के पक्ष में आया। इसकी वजह इमरान मसूद का लोगों के बीच एक राजनीतिक वजूद होना है। वो भले ही लंबे समय से कोई इलेक्शन ना जीते हों लेकिन इस बात को उनके विरोधी भी मानते हैं कि वो चुनाव लड़ना खूब अच्छे से जान हैं।
बसपा से 2017 में मेरठ से सुनीता वर्मा मेयर बनी थीं। उनकी जीत में मुसलमानों के वोट का अहम रोल था। चुनाव सुनीता के पति पूर्व विधायक योगेश वर्मा ने उनको लड़ाया और वो जीतीं। इस चुनाव में हसमत मलिक को बसपा ने उतारा। मेरठ के मुसलमान सपा को वोट देने के पक्ष में नहीं थे, ये काउंटिंग के बाद साफ हो गया है लेकिन उन्होंने बसपा को भी वोट नहीं किया। वजह साफ है, जिस तरह से हसमत मलिक स्टेज पर असहज दिखे, जिस तरह की बातें वो करते रहे। जिस तरह वो मीडिया में बोले, उससे उनकी छवि एक कम समझ के सीधे साधे आदमी की बनी। नतीजा ये हुआ कि मुस्लिमों की वोटों मेजॉरिटी AIMIM के पक्ष में चली गई। नतीजों से साफ है कि अगर मेरठ में कोई दमदार मुस्लिम प्रत्याशी बसपा ने दिया होता तो नतीजा 2017 वाला हो सकता था।
मुरादाबाद में बसपा ने मोहम्मद यामीन को उतारा था लेकिन वो मुसलमानों की पसंद नहीं बन सके। इसकी वजह ये थी कि वो कांग्रेस के रिजवान कुरैशी के सामने मुसलमानों को कमजोर लगे। हारने के बाद भी रिजवान को जहां मुरादाबाद में 1 लाख 18 हजार वोट मिले, वहीं बसपा के यामीन को सिर्फ 15 हजार। यहां मुसलमानों का ज्यादातर वोट सपा और बसपा दोनों को छोडडकर कांग्रेस के पास गया, तो इसकी अहम वजह कैंडिडेट बने।
प्रयागराज में बसपा ने सईद अहमद को उतारा। सईद मुस्लिमों की पसंद नहीं बन सके। ऐसे में यहां सपा, बसपा और कांग्रेस में मुस्लिम वोटों का ज्यादातर हिस्सा बंट गया। गाजियाबाद में भी बसपा का प्रत्याशी कुछ मुस्लिम पॉकेट के वोट हासिल करने तक ही सीमित रहीं।
लखनऊ में भाजपा की सुषमा खर्कवाल के सामने सपा ने वंदना मिश्रा को लड़ाया। वंदना मिश्रा सिविल सोसायटी में काफी सक्रिय हैं। बसपा ने शाहीन बानों को मुकाबले में उतारा लेकिन वो कोई प्रभाव नहीं छोड़ सकीं। नतीजा ये हुआ कि मुस्लिमों का बड़ा हिस्सा वंदना मिश्रा के पक्ष में दिखा।
मथुरा में मेयर पद के लिए बसपा ने मोहतसिम अहमद को अपना उम्मीदवार बनाया लेकिन वो एकदम बेअसर रहे। सपा से हिन्दू कैंडिडेट होने के बावजूद मुस्लिम वोटों का ज्यादातर हिस्सा उस तरफ गया। नतीजा ये रहा कि बीजेपी के विनोद अग्रवाल और सपा के तुलसीराम शर्मा की लड़ाई में बसपा के मोहतसिम कहीं नहीं दिखे।
फिरोजाबाद में बसपा ने रुखसाना बेगम को उतारा। सपा से बसपा में आए महबूब अजीज की पत्नी रुखसाना को बसपा ने उतारा। मुस्लिमों के बीच उन्होंने लगातार प्रचार लेकिन वो पहली पसंद नहीं बन सकीं। फिरोजाबाद में मुस्लिमों का बड़ा हिस्सा सपा की मसरूर फातिमा की तरफ चला गया। हालांकि जीत भाजपा की ही हुई।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)