कुत्तों के आदमखोर हो जाने पर हर कोई अपनी तरह से व्याख्या कर रहा है। लेकिन, नतीजा-ठाक के तीन पात।
कुत्ते इंसान के सबसे विश्वसनीय दोस्त हैं। यह एकाएक दुश्मन कैसे हो गए? इस यक्ष प्रश्न का जवाब नहीं तलाशा जा रहा। सीतापुर से बरेली ज्यादा दूर नहीं है। यहां देश का सबसे बड़ा पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान है। आखिर यहां के पशु चिकित्सकों की राय इस मामले में अब तक क्यों नहीं ली गयी? बिना किसी शोध निष्कर्ष निकाले जा रहे हैं। आदमखोर कुत्तों को कोई जंगली कुत्ता बता रहा है। कोई हादसों के लिए बढ़ती गर्मी को कारण मान रहा है। कभी पालिका कर्मचारी कुत्तों के पीछे भाग रहे हैं। कभी पुलिस और पशुपालन विभाग के लोग। हालात दिन ब दिन बिगड़ती जा रही है। मामला राजनीतिक तूल पकड़ चुका है। मुख्यमंत्री सीतापुर का दौरा कर चुके हैं। विपक्ष रोज नए बयान जारी कर रहा है। इस बीच अब हरदोई में जंगली सुअरों के भी हिंसक हो उठने की खबरें आ रही हैं। पिछले दो दिनों में कई लोगों के घायल होने की खबर है।
सवाल है गर्मी का असर सिर्फ सीतापुर के कुत्तों में ही क्यों है? एक क्षेत्र विशेष के कुत्तों में ही बौखलाहट क्यों? आखिर वे क्यों पगलाए हैं, इसकी भी तो पड़ताल होनी चाहिए। लेकिन, इस दिशा में कोई नहीं सोच रहा। पहले यह खबर आई थी कि जिस क्षेत्र में कुत्तों ने ज्यादा हमले किए वहां पहले अवैध बूचडख़ाना था। योगी सरकार में इस पर ताला लग गया है। ऐसे में मांसाहार के आदी कुत्ते आदमखोर हो गए। आखिर इस तथ्य की सचाई क्या है। इस पहलू की भी पड़ताल होनी चाहिए। अब तक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह खुलासा नहीं हुआ कि जिन कुत्तों को आदमखोर कह कर मारा गया वह वास्तव में पागल हो गए थे या आदमखोर थे। दर्जनों कुत्तों को बेरहमी से मारकर बिना पोस्टमार्टम के दफना दिया गया।
जिला प्रशासन के इस गैर जिम्मेदाराना हरकत पर भी सवाल उठ रहे हैं। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ और पेटा जैसे संगठन भी सरकार को बेजुबानों की बेमौत पर घेर रहे हैं। बहरहाल, घर की खिड़कियों पर लटके बच्चे खुले मैदान में जाने को ललक रहे हैं। लेकिन, डीएम के आदेश पर कोटेदार, बीडीओ, प्रधान, लेखपाल, अध्यापक और चिकित्सकों की टीम उन पर कड़ी नजर रख रही है। वे चिलचिलाती धूप में हाथों में डंडा लिए कुत्तों के पीछे भाग रहे हैं। कुत्तों ने अब भौंकना छोड़ दिया है। वे दुम दबाए इस गली से उस गली, इस बाग से उस बाग हॉफते हुए भाग रहे हैं। लेकिन, मुंहनोचवा की तरह कहीं न कहीं कोई कुत्ता हर रोज किसी मासूम को नोच खाता है। पकड़ इस नोचने वाले कुत्ते की होनी चाहिए। लेकिन, यह प्रशासन की पकड़ से दूर है।
समस्या का समाधान तलाशना है तो शासन, प्रशासन और नेताओं को जमीनी हकीकत समझनी होगी। पेट्रोलिंग और ग्रामीणों की चौकीदारी से संभव है चोरियां रुक जाएं लेकिन घात लगाए बैठे आदमखोर कुत्ते नियंत्रण में आ जाएं यह संभव नहीं। पहले तो यह तलाशना होगा कि क्या वाकई सीतापुर के कुत्ते आदमखोर हो गए हैं। यदि ऐसा है तो उसकी वजह क्या है। कितने कुत्तों में यह लक्षण पाए गए हैं। इसका आंकड़ा तैयार करना होगा। यदि कुत्तों के व्यवहार में कोई परिवर्तन आया है तो इसके लिए एनीमल बिहैवियर एक्सपर्ट की सेवाएं लेनी होंगीं। इंडियन वेटेनेरी रिसर्च इंस्टीट्यूट के चिकित्सकों और अनुसंधानकर्ताओं को भी इस काम में लगाना होगा। तब जाकर समस्या का स्थायी हल निकल पाएगा। अन्यथा आज यह समस्या सीतापुर की है कल हरदोई, बाराबंकी या फिर किसी और जिले की हो सकती है। ऐसे में बिना किसी निष्कर्ष के हम बेजुबान कुत्तों को बलि का बकरा बनाते रहेंगे और हर दिन मुंहनोचवा की तरह किसी नए क्षेत्र में खूंखार कुत्ते मासूमों को नोचते रहेंगे।
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